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Tuesday 22 August 2023

करीबी लोगों के प्रति हम लापरवाह हो जाते हैं

कुछ लोग जो हमारे करीबी होते हैं, अक्सर हम उनके प्रति लापरवाह हो जाते हैं। पति को पता नहीं चलता कि पत्नी किस शारीरिक समस्या से जूझ रही है। पिता को पता नहीं होता कि उसका बेटा आजकल सिगरेट पीने लगा है या बेटी किसी के साथ रफूचक्कर होने के चक्कर मे है। 
हमारा कोई घनिष्ठ दोस्त कर्ज़ में गले तक डूबा हुआ अपनी आत्महत्या की योजना बना चुका होता है। हमारा कोई विश्वस्त साथी हमारे दुश्मन से हाथ मिला चुका होता है और हमें पता ही नहीं चलता। 

हम अक्सर अपने करीबी लोगों के प्रति लापरवाह होते जाते हैं। वो हमारे जीवन के इतने आम हिस्से बन चुके होते हैं कि उनके जीवन मे घटित होने वाले छोटे बड़े महत्वपूर्ण बदलाव हमें रोज़मर्रा के जीवन मे दिखाई ही नहीं आते। जब आप कई दिनों बाद किसी को देखते हैं तो वो पहले से दुबला हुआ है या मोटा इसका झट से पता चल जाता है। कई दिनों बाद मिलने वाले किसी के व्यवहार में हुए बदलाव को आप आसानी से समझ जाते हैं। 

लेकिन जब रोज़ थोड़ा थोड़ा सा बदलाव हो, रोज़ थोड़ा थोड़ा सा आप देखें तो उस रोज़मर्रा के परिवर्तन के आप आदी हो जाते हैं। स्थितियां अंदर ही अंदर बदलती जाती हैं और आप को समझ नहीं आता। बहूत बार ऐसा भी होता है कि सामने वाले व्यक्ति के जीवन मे चल रही बातों को लेकर आप उतने संजीदा नहीं होते, आपकी प्राथमिकताएं उस समय शायद कुछ और होती हैं। या आप को उतना वास्ता महसूस नहीं होता। 
कई बार "इसका तो हमेशा का ही ऐसा है" मान कर हम हल्के में ले लेते हैं। कभी कभी हम अपने मसलों में इतने अधिक डूब चुके होते हैं कि हमें ये देखने की फुरसत भी नहीं होती कि हमारे उस करीबी के जीवन में आखिर चल क्या रहा है? 
आपको दिखता नहीं कि उनका मूड उखड़ा हुआ रहता है, चिड़चिड़ापन आता जा रहा है, पहले जैसा संवाद नहीं करते, अपने मे खोए रहते हैं। आपको नहीं दिखता कि उनके व्यवहार में व्यक्तित्व में सूक्ष्म बदलाव आते जा रहे हैं। रिश्ते में बढ़ती दूरियों के पीछे कई बार यही बहुत बड़ा कारण बन जाता है जब एक को लगता है कि दूसरा उसमे रुचि नहीं लेता, गंभीरता से नहीं लेता, अपनी ही लगाता रहता है, प्राथमिकता में नहीं रखता, बिना बोले समझता नहीं या सीधे शब्दों में कहें तो लापरवाह हो जाता है। 

कभी कभी हमारे अपने करीबी लोग बहुत बड़ी मानसिक लड़ाई लड़ रहे होते हैं ऐसी लड़ाई जो हमारे सामने होते हुए भी हम देख नहीं पाते। किसी अंतर्द्वंद्व से गुज़र रहे होते हैं जिसके पहलुओं पर हमारी नज़र नहीं जाती। कोई संकट उन्हें घेरे हुए होता है, कोई बात उन्हें भीतर ही भीतर खाये जाती है, लेकिन चूंकि हम उन्हें लापरवाह, गैर जिम्मेदार, अरुचिपूर्ण या उपेक्षा करते हुए लगते हैं तो वे हमसे अपने मन की बात अपनी वेदना अपनी समस्या, दुख, तकलीफ, परेशानी साझा करने से हिचकते हैं। 

हो सकता है कि जब जब उन्होंने हमें अपनी बात बताने की कोशिश की थी तो हमने उन्हें एक प्रकार से ठुकरा दिया, हल्के में लिया, दरकिनार कर दिया या अपना पल्ला झाड़ लिया था जिससे उनमें ठुकराए जाने का अनुभव हुआ। उनकी अपेक्षाओं को हमने पूरा नहीं किया या शायद उनकी अंतिम आशा को भी तोड़ दिया हो। 
हमने छोटी सी बात पर तमाशा खड़ा कर दिया हो, गलत व्यवहार किया हो तो भी वो अपनी बात साझा नहीं करते। 
कभी कभी उन्हें हमारी अप्रिय प्रतिक्रिया का भय होता है या उन्हें लगता है कि हम पर्याप्त परिपक्वता से शायद नहीं ले पाएंगे इसलिए वो हमसे साझा नहीं करते और भीतर ही भीतर अकेले पड़ते जाते हैं हमसे दूर होते चले जाते हैं। 

ये बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हमने अपने करीबी लोगों के साथ अच्छा समय देखा था, वो कदाचित हमारे विपरीत समय मे हमारे साथ भी खड़े हुए थे, शायद अनेक प्रकार से हमारी मदद भी की थी। तो क्या हमारा ये कर्तव्य नहीं बनता कि हम उनके प्रति जागरूक हों, ज़िम्मेदार बनें, साथ निभाएं, उनके लिए खड़े रहें। अगर आप इससे सहमत नहीं हैं तो आप स्वार्थी इंसान हैं। 

यदि आप अपने करीबी लोगों के प्रति लापरवाह रहेंगे तो एक दिन पूरी तरह से अकेले पड़ जाएंगे। आपके जीवन का सौंदर्य अपने करीबी लोगों के कारण है। आपकी सुविधा में, आपकी सुरक्षा में, आपके काम बनने में आपके करीबी लोगों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसके प्रति लापरवाह होना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होता है। 

तो देर मत कीजिये, अपने करीबी लोगों की सच्चे भाव से खोज खबर लीजिए, जानिए कि अगर आप उनकी किसी वेदना को दूर कर सकें, समस्या को सुलझा सकें, उन्हें अच्छा महसूस करवा सकें। आपके करीबी लोग आपकी ताक़त हैं इसलिए यह आपके लिए भी बहुत ज़रूरी है। 

@मन्यु आत्रेय

2 comments:

  1. करीबी लोग की पहचान ही बहुत मुस्किल है श्रीमान ! प्रेरक लेख है श्रीमान

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  2. Behtareen sir ...bahut hi mahatvapurn baat kahi hai aapne 👌👍💐🙏🏼

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