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Sunday 11 April 2021

शक्ति अर्जन की तैयारी कीजिये

शक्ति अर्जित कीजिये। शक्ति ही जीवन का सार है। आपकी देह में जब तक प्रतिरोधक शक्ति रहेगी, आपमें आत्मा को धारण किये रखने की शक्ति होगी आप जीवित रहेंगे। जब तक आपमें दुनिया को प्रेम देने की शक्ति रहेगी आप दुनिया के लिये एक मंगलकारी व्यक्ति रहेंगे। जब तक आपमें आवश्यक चीज़ें और सेवायें खरीदने की शक्ति रहेगी, आप अपनी आवश्यकतायें पूरी करते रहेंगे। 

शक्ति बहुत सी बाहरी बातों और बहुत सी आंतरिक बातों में निहित करती है। आंतरिक और बाहरी शक्ति के मेल से ही असली शक्ति का उदय होता है। आपके अंदर की शक्ति ही बाहर की वस्तुओं की शक्ति को अर्थपूर्ण बनाती है। आपके हाथ की रायफल में तब तक ताकत नहीं है जब तक आपके भीतर उसे चलाने की हिम्मत न हो। आपके सामने रखा जेट प्लेन एक रिक्शे से भी गया गुजरा हो जाता है जब आप उसे उड़ाना नहीं जानते। 

आपके भीतर बहुत सी निहित शक्तियाॅं हैं उन्हें पहचानना जरूरी है उनमें से अधिकांश शक्तियाॅं किसी क्षण में अचानक प्रकट होती हैं, अचानक सामने आ जाती हैं जब आप किसी संकट से घिरते हैं। आपको पता नहीं कि आप बहुत तेजी से दौड़ने की क्षमता रखते हैं परंतु आपको एक दिन कुत्ता दौडाता है और आप एक फर्राटा धावक की तरह से दौड़ पडते हैं। 

हममें से अधिकांश लोग अपनी शक्तियों को जानते पहचानते नहीं हैं, या फिर भूल बैठे हैं, हम सभी को एक जामवंत लगता है जो हमारी शक्तियों का हमें स्मरण कराये। अधिकांश लोगों के भीतर निहित अप्रकट शक्तियाॅं उस तलवार की तरह भोथरी हो जाती हैं जिसे सान पर नहीं चढ़ाया जाता, जिसे धार नहीं दी जाती, जिसे मांजा नहीं जाता। 

आपकी आंतरिक योग्यता, पात्रता एवं क्षमतायें मिलकर ही आपकी शक्ति बढ़ाती हैं। हर व्यक्ति हर शक्ति नहीं पा सकता क्योंकि उसके लिये आवश्यक देश, काल, परिस्थितियों, साधनों का संयोग हर किसी के लिये एक समान नहीं हो पाता है, इसके लिये धीरे धीरे पात्रता विकसित करनी पड़ती है। बिना पात्रता के शक्ति पा जाने वाला व्यक्ति उसका इस्तेमाल वैसे ही करता है जैसे एक बंदर उस्तरे का, और अपना ही नुकसान कर डालता है। 

जो धीरे धीरे शक्ति अर्जित करता है वह बढ़ती हुई शक्ति को समायोजित करता जाता है, अचानक शक्ति मिल जाने पर आदमी को सूझता नहीं कि उसका कैसे इस्तेमाल करना है, कैसे प्रबंधन करना है? शक्ति एक अश्व की तरह होती है जिसे साधना पडता है, अच्छा घुड़सवार बनना पड़ता है, अन्यथा शक्ति अपने सवार को सिर के बल पटक देती है। आपके आसपास ऐसे बहुत से लोग आपको दिखेंगे जो अपने को मिली शक्तियों को दुरूपयोग करते दिखेंगे, ये वही अयोग्य लोग हैं जिन्हें भाग्य से शक्ति मिल गई है। 

अगर आप सज्जन हैं अगर आप अच्छे इंसान हैं तो आपका शक्तिशाली होना और भी आवश्यक हो जाता है, अन्यथा दुर्जन आपको मिटा देगा। शक्तिहीन जीवन निरर्थक है परंतु सबसे सुखद बात यह है कि संसार का छोटे से छोटा जीव भी पूरी तरफ शक्तिहीन नहीं है, यह बात खुली आंखों से न दिखने वाले कोरोना वायरस ने सारी दुनिया को बता दी है कि एक छोटे से छोटा जीव भी विध्वंसक शक्ति रखता है। 

आपमें जो कमजोरी नही है वही आपकी शक्ति है, और आपमें जो कमजोरी है उसी शक्ति को आपको प्राप्त करना है। अपनी शक्तियों को पहचानिये, अपनी कमजोरियों का आकलन कीजिये और जरूरी शक्ति अर्जन के लिये तैयार हो जाईये। 
धीरे धीरे शक्ति प्राप्त करते चलिए। बढ़ाते चलिए, सीखिए, जोड़िए,घटाइए। समीक्षा कीजिये, गलतियां दूर कीजिये और आगे बढिये। शक्तिशाली जीवन का आनंद ही अलग है। अच्छे आदमी की शक्तिहीनता उसके और उससे जुड़े लोगों के लिए अभिशाप बन जाती है इसलिये शक्तिशाली बनिये शक्ति अर्जित कीजिये। 

@मन्यु आत्रेय

Friday 9 April 2021

आपके आसपास क्या हो रहा है

आप के आस पास बहुत कुछ घट रहा होता है 
आपके परिवार में आपके पास पड़ोस में आपके कार्यस्थल पर 
आपके आने जाने वाले रास्ते पर, जहां कहीं भी आप रहते हैं 
उस परिवेश में कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ घट रहा होता है 
जिसका संबंध आप से हो चाहे नहीं हो वह कहीं ना कहीं आपको प्रभावित करता है ।
हमें अपने परिवेश में घट रही घटनाओं के प्रति जागरूक होना चाहिए 
हमें ज्ञान होना चाहिए कि हमारे आसपास इस समय माहौल कैसा है लोग क्या कर रहे हैं 
और इस बात का बोध भी हमें होना चाहिए कि जो कुछ भी हो रहा है 
उसका हम पर कब और कैसा प्रभाव पड़ सकता है 
आप जिस रास्ते से आते जाते हैं वह इलाका  लूट राहजनी के लिए बदनाम हो गया है 
अगर आपको पता नहीं है तो किसी दिन आप भी शिकार हो सकते हैं 
अगर आपके अड़ोस पड़ोस में कोई आपराधिक गतिविधि चल रही है 
तो कल आप भी उसका शिकार हो सकते हैं 
आपके आसपास के लोगों में से कोई कोविड-19 संक्रमित है 
और आप नहीं जानते तो हो सकता है कि कल को आप भी संक्रमित हो जाएं 
लोगों को पता नहीं चलता और उन्हीं के घर में बगल के कमरे में 
उनके परिवार का कोई सदस्य चुपचाप फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेता है। 
कहां क्या चल रहा है इसकी जानकारी रखना एक हद तक जरूरी भी है 
क्योंकि वर्तमान परिवेश की जानकारी आपको सतर्क होने में सावधान होने में 
और सुरक्षित होने में मदद कर सकती है 
आप के भीतर परिस्थितियों की समझ पैदा करती है 
जिससे आप अपनी उस क्षण की प्राथमिकताओं का निर्धारण कर सकते है।
आसपास क्या चल रहा है इसकी जानकारी आपको आसानी से मिल सकती है 
अगर आप अपने आंख नाक कान खुले रखें 
लोगों से आप बात करते रहिए लोगों को बारीकी से देखते रहिए 
आसपास  लोग क्या बातें कर रहे हैं उस पर भी थोड़ा ध्यान रखिये। 
लोग अपनी सामान्य जानकारी, समझ, अपने अनुभव और तथ्यों को 
आपस में साझा करते हैं, आदान प्रदान करते हैं
बातों को घटनाओं को एक दूसरे से जोड़कर देखने की क्षमता विकसित कीजिए 
आपको धीरे-धीरे समझ में आने लग जाएगा कि क्या चल रहा है? 
वह कैसे और क्यों हो रहा है कौन कर रहा है और आप किस प्रकार से खुद को अपने परिवार को 
और अपने करीबी लोगों को किस प्रकार से सुरक्षित रख सकते हैं
इस क्षमता को बढ़ा लेने से आपकी ताकत बढ़ जाती है। 
हालांकि यह बहुत सरलता से आपको पता तो नहीं चलेगा लेकिन 
अगर आप थोड़े से जिज्ञासु होंगे थोड़ी सी पहल करेंगे थोड़ी सी रुचि लेंगे 
और थोड़ा सा समय देंगे तो आपको आसानी से यह पता चल सकता है। 
प्रकृति ने हर जीवधारी में यह क्षमता भरी हुई है कि वह 
संकट संभावित परिवेश के प्रति अपने आप ही सजग हो जाता है। 
अपनी परिस्थितियों अपने परिवेश के प्रति जागरूकता 
आपको अपनी प्राथमिकताओं के निर्धारण में मदद करती है। 
इसलिए परिवेश की अपनी समझ बढ़ाइए आपके लिए बेहद जरूरी है।
अपने परिवेश और अपनी स्थिति के प्रति बोध से भर जाना सुरक्षा की पहली कुंजी है। 

@मन्यु आत्रेय

ऊर्जा के जोंक लोगों से बचिए।

हमें जीवन में बहुत से लोग महत्वपूर्ण स्थान बनाते हैं और फिर 
हमारे जीवन में परेशानियाॅं पैदा कर देते हैं। कुछ लोग सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं, 
अपने सुख, अपनी सुविधा, अपने लाभ, अपने सम्मान, अपनी सुरक्षा 
सिर्फ यही उनकी प्राथमिकता में होता है। 
सिर्फ यही नहीं वे अपने आप को दूसरों से श्रेष्ठ भी मानते हैं, 
भले ही वे अपने शब्दों से ये कहें न कहें लेकिन 
अपने हाव भाव, अपनी देह भाषा से यह झलका ही देते हैं 
कि वे स्वयं को दूसरों से बेहतर समझते हैं। 
ऐसे लोग कभी भी नुक़सान पहुंचा सकते हैं 
और कभी भी मुश्किल में फंसा सकते हैं कभी भी अपमान कर सकते हैं। 
ऐसे लोगों से दूरी भली। 
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने आसपास के हर व्यक्ति, 
हर बात हर घटना पर नियंत्रण करना चाहते हैं। 
वे चाहते हैं कि जो कुछ भी हो या नहीं हो 
वह सिर्फ और सिर्फ उनकी मर्जी से ही होना चाहिये। 
वे आपके जीवन में घटने वाली हर बात पर नियंत्रण करना चाहते हैं, 
चाहे आपको पसंद हो या नहीं हो, आपके हित में हो या नहीं हो, 
उन्हें सिर्फ आप पर नियंत्रण चाहिये, 
और जो वे करेंगे वे हमेशा ही सही होता है, ये उनकी धारणा होती है। 
ऐसे लोगों से दूरी भली। 
कुछ लोग बड़े ही नाटकीय होते हैं, वे आपके जीवन में 
ऐसी परिस्थितियाॅं पैदा कर देते हैं कि आप फंस जाते हैं, 
आपके भीतर अपराध बोध भर देते हैं, 
त्याग करने, छोड़ देने, उनकी बात मानने के लिये 
आप भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल कर दिये जाते हैं। 
वे ऐसा नाटक खड़ा कर देते हैं जिसमें आप और कई बार दूसरे भी 
आप को ही गलत मानने लग जाते हैं, 
ऐसे नाटकबाज़ लोगों से बचना ही भला। 
आपके जीवन में ऐसे लोग भी जुड़े होंगे जो आपकी सारी उर्जा को निचोड़ लेते हैं, 
आपके भीतर नकारात्मकता भरते हैं, आपको भटकाते हैं, आपको डराते हैं, 
आपकी हर बात में आलोचना करते हैं, आपके स्वाभिमान को चोट पहुंचाते हैं, 
जिन्हें देखते ही आपका मन खट्टा हो जाता है 
और कोई अपशकुन का भाव आपके भीतर आने लग जाता है। 
ऐसे लोगों से जितना दूर रहा जाये उतना अच्छा। 
आप उन लोगों को अवश्य जानते होंगे जो झूठ बहुत बोलते हैं, 
झूठ बोलने से जरा भी नहीं हिचकते, 
जो लगातार तथ्यों, बातों से खिलवाड़ करते रहते हैं, 
किसी भी प्रकार से आपको आत्मग्लानि से भर देते हैं और आपका तमाशा बना देते हैं। 
ऐसे लोगों को भी आप ज़रूर पहचान लीजिये 
जो कभी भी किसी दूसरे की खुशी में खुश नहीं होते, 
किसी की उपलब्धि पर खुश नहीं होते, किसी के सौभाग्य से जलते कुढ़ते हैं 
और हमेशा अपने दुर्भाग्य, अपनी तकलीफों, अपने संकटों का ही ब्योरा देते रहते हैं,
जो दूसरों को अपने बारे में अच्छा महसूस नहीं करने देना चाहते 
जो विक्टिम कार्ड खेलते हैं 
और लोगों की सहानुभूति, उनका ध्यान, उनकी सेवा, 
उनकी मदद हासिल करना अपना अधिकार बना लेते हैं। 
ऐसे लोग आपकी मानसिक शांति, आपके सम्मान, 
आपके सपनों, आपकी प्रगति के लिये बाधा हैं 
इनका ज़हर अपने दिलो दिमाग़ पर कभी फैलने नहीं देना चाहिये। 
ये चाहे जिस रिश्ते में हों, वह रिश्ता बहुत जल्दी मुरझा जाता है। 
शांति से ऐसे लोगों को पहचानिये, 
उनसे धीरे धीरे दूरी बढ़ाते चलिये। 
अगर दूर होना संभव नहीं है तो कम से कम इतना ज़रूर कीजिये कि 
वे आप के मन और जीवन पर अपना प्रभाव नहीं छोड़ पायें।

@मन्यु आत्रेय

Wednesday 7 April 2021

हिसाब किताब रखना जरूरी है!

हिसाब किताब रखना ज़रूरी है ! 
इसलिये जरूरी है कि ताकि ठगे जाने, धोखा खाने, मुश्किलों में पड़ने 
और परेशान होने से आप बच सकें। 
जो आदमी हिसाब किताब नहीं रखता वो अक्सर अपना नुक़सान करा बैठता है। 
वैसे तो प्रकृति ने ही इंसान को हिसाब किताब की क्षमता दी है 
जब कभी आप कुछ मापते हैं या तुलना करते हैं या गिनते हैं 
या तौलते हैं तो आप हिसाब किताब ही कर रहे होते हैं। 
जब आप अपने बच्चे को पढ़ाई नहीं करने के लिये डांटते हैं 
तो आप अदृश्य रूप से ये हिसाब लगा चुके होते हैं 
कि यह पढ़ाई नहीं करने पर फेल हो जायेगा। 
जब आप आप अपने पति को उनकी खान पान 
और देर रात तक जागने की आदत को लेकर बार बार टोकती हैं 
तो आप ये हिसाब लगा चुकी होती हैं कि इसका उनकी सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। 
जब आप किसी व्यक्ति से झगड़ा करते हैं कि वो आजकल आपकी ओर ध्यान ही नहीं देता, 
तो आप दोनों के बीच बढ़ रही दूरी का हिसाब लगाकर उसे खो देने से डरे हुए होते हैं। 
हिसाब किताब करना ज़रूरी है 
क्योंकि हिसाब किताब रखने वाला आदमी 
सतर्क और जागरूक माना जाता है। 
पत्नी जब पति की दिनचर्या का हिसाब किताब रखती है 
तो पति इधर उधर भटकने से डरता है। 
एक पिता जब अपने बच्चे के गिरते स्वास्थ्य का हिसाब रखता है 
तो बच्चे की बुरी आदतें सामने आ जाती हैं। 
जब आप अपनी गाड़ी में पेट्रोल भराने और चली गई दूरी का हिसाब करते हैं 
तो आपकी गाड़ी में होने वाली पेट्रोल की चोरी सामने आ जाती है। 
जब एक प्रेमिका अपने प्रेमी की उपलब्धता का हिसाब किताब रखती है 
तो वो समझ जाती है कि वह डबल गेम खेल रहा है। 
हर चीज़ का हिसाब रखिये, 
खासकर उन बातों का जिनको हम मात्रा या आंकड़ों में तौल नहीं सकते 
जिन्हें केवल महसूस करके समझा जा सकता है, क्योंकि असली धोखा यहीं से होता है। 
अपने घर परिवार में खर्चों और आमदनी का हिसाब रखने के अलावा 
अपने रिश्ते में आपके और सामने वाले के योगदान का हिसाब किताब भी रखिये। 
जरा हिसाब लगाईये कि कौन अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से 
आपसे मनचाहा काम करवा लेता है, 
कौन है जो हमेशा आपके साधनों का इस्तेमाल करता है 
लेकिन आपके वक्त पर कभी भी वो उपलब्ध नहीं होता? 
वो कौन है जो चीजें उधार ले जाकर कभी वापस ही नहीं करता?
वो कौन है जिसे आपकी योजनायें पता चलने के बाद उनमें व्यवधान आना शुरू हो जाता है? 
वो कौन है जो आपसे लेता तो भरपूर है परंतु देता बहुत कम है। 
आपकी पूरी ज़िंदगी, आपके संसाधन, आपका समय, आपकी भावनायें 
ये सब निवेश की तरह है, वहीं लगाईये जहाॅं से सबसे ज़्यादा रिटर्न मिले, 
अन्यथा आपका मुद्दल डूबना तय है। 
और ये सिर्फ तब संभव होगा जब आप हिसाब किताब रखेंगे। 
इस निर्मम दुनिया में बहुतेरे लोग आपको निचोड़ने 
और आम की चूसी हुई गुठली की तरह चूस कर दूर फेंकने से परहेज़ नहीं करेंगे, 
खुद को बचाने के लिये आपको फंसाने से ज़रा भी नहीं हिचकेंगे, 
अपने फायदे के लिये आपको हानि पहुंचाने की पूरी व्यवस्था कर रखेंगे। 
ऐसे लोगों के लिये कुछ भी बेहिसाब मत रखिये, 
न धन, न समय, न संसाधन, न भावनात्मक सहारा, न भरोसा। 
ऐसे लोगों को पहले से ही पहचान कर उन पर दरवाज़े बंद कर देने में ही अक्लमंदी है। 
इसलिये हिसाब किताब की तरफ से एकदम आंखें बंद नहीं करना है, 
बल्कि सब कुछ अपने दिलो दिमाग में दर्ज करते जाना है 
और यह काम एकदम चुपचाप करना है 
तथा सिर्फ तभी अपना हिसाब पेश करना है 
जब हिसाब मांगा जाये, या कोई बड़ा सवाल खड़ा हो जाये।
ये दुनिया ऐसे खुदगर्ज लोगों से भरी पड़ी है जो कृतघ्न हो जाते हैं, 
जो आपके योगदान, आपकी भलाई, आपकी नेकी को 
पलक झपकते भूल जाते हैं और पूछ बैठते है कि आपने उनके लिए किया ही क्या है?
हिसाब किताब रखना सामने वाले नहीं अपनी औकात और स्थिति को भी 
सही सही बयान कर देता है, हम कहाँ कम पड़ रहे हैं, कहाँ चूक रहे हैं 
ये सब हिसाब किताब से समझ आ जाता है। 
इसलिए थोड़ा बहुत हिसाब किताब हर बात का रखना ही चाहिए। 

@मन्यु आत्रेय

Tuesday 6 April 2021

अतृप्ति को स्वीकार कीजिये।

हममें से अधिकांश लोग किसी न किसी बात को लेकर नाखुश रह जाते हैं 
ऊपर से खुश लेकिन गहरे में अतृप्त। 
आज ज़रा इस बात पर विचार कीजिये कि आप अपनी ज़िंदगी में 
किस किस मामले में तृप्त हैं और किस किस मामले में अतृप्त हैं? 
आपका जिस जिस बात से मन नहीं भरता उस उस बात में आप अतृप्त हैं। 
आमतौर पर आप संतोष करके चल रहे होते हैं 
संतोष का अर्थ है जो है, जैसा है, जितना है
उसी में समाधान समझना, उसी में खुश रहना। 
आपके पास दो रोटियाॅं हैं और आप उतने में ही खुश हो जायें 
तो आप संतोष करके रह गये हैं, 
परंतु आपके शरीर और मन को 5 रोटियों की भूख है तो 
पांचवी रोटी खा लेने के बाद जो अनुभव आपको होगा उसे कहते हैं तृप्ति। 
तृप्ति ऐसा अनुभव है जिसे बताया नहीं जा सकता, न मात्रा में, न दिशा में। 
तृप्ति तब मिलती है जब आपके शरीर और मन के लिये आवश्यक मात्रा आपको मिल जाती है।
संतृप्ति वह चरम बिन्दु है जिसके आगे उससे आपको कुछ और नहीं मिल पाता है। 
कई बार हम तृप्ति पाने के पीछे अंधाधुंध भागते रहते हैं पर तृप्ति मिलती नहीं। 
तृप्ति बहुत सारी शर्तों के पूरा होने पर ही मिलती है 
और हर बार वांछित शर्तें पूरी हों ये ज़रूरी नहीं।
तृप्ति पर्वत का वो शिखर है जिसके दोनों ओर ढलान ही होता है। 
तृप्ति हमेशा के लिये नहीं होती, थोड़े समय बाद यही तृप्ति अतृप्ति को जन्म देती है 
क्योंकि तृप्त होने का अनुभव धीरे धीरे गायब होता जाता है 
और उसकी जगह अतृप्ति लेती जाती है। 
अतृप्ति बेचैन करती है, असंतोष खिन्न करता है। 
चूंकि पहले तृप्ति का अनुभव हो चुका होता है 
तो उसकी अनुपस्थिति हमें गहरे में अतृप्त होने का अहसास कराती है। 
यह अतृप्ति हमें मानसिक रूप से परेशान और शारीरिक रूप से विव्हल रख सकती है। 
देह और मन की प्रवृत्ति अधिकाधिक पाने की होती है परंतु बहुत कम लोगों को 
मनचाही चीज़, मनचाहे समय पर मनचाही मात्रा में मिल पाती है। 
इसलिये हममें से अधिकांश लोगों के मन में कहीं न कहीं गहरे में 
एक अतृप्ति बसी हुई होती है। 
परंतु कभी कभी यह अतृप्ति हमें नया सृजित करने, कुछ नई खोज करने के लिये, 
कभी कुछ और संघर्ष करने के लिये प्रेरित करती है। 
तृप्ति क्षणिक है, अतृप्ति दीर्घस्थायी है, इसलिये इसे अपनी प्रेरक शक्ति बनाया जा सकता है।
अतृप्ति बताती है कि आपके जीवन में अभी रस लेने, आनंद उठाने की संभावना शेष है। 
अभी कुछ और खुश हुआ जा सकता है। 
अतृप्ति एक आस बंधाती है तृप्त होने का। 
अतृप्ति आपके भीतर स्वाद लेने की कला विकसित करती है। 
आपको बेहतर ढंग से आस्वादन सिखाती है आपको नये विकल्प सुझाती है। 
आपको उसकी क़द्र सिखाती है जो कुछ आपके पास है। 
अतृप्ति आपकी उन्नति के प्रवेश द्वार की चाबी बन सकती है 
 बशर्ते आप तृप्ति से बंधना बन्द कर दीजिये।

@ मन्यु आत्रेय

Monday 5 April 2021

बिछड़ने वालों को समय दो!

जीवन बहुत सी अनिश्चितताओं से भरा हुआ है, 
कब कौन कहाँ कैसे मिल जाये पता नहीं, 
कब कौन कहाँ कैसे बिछड़ जाए पता नहीं। 
मिलना बिछड़ना सारी ज़िन्दगी लगा रहेगा। 
लोग जीवन में आते रहेंगे और जीवन से जाते रहेंगे। 
आपका व्यक्तित्व और परिस्थितियां तय करेंगी कि कौन आपके जीवन में आएगा
आपकी समझदारी और व्यवहार तय करेगा कि कौन कब तक आपके जीवन में टिकेगा।
हम कुछ लोगों को कभी दूर नहीं होने देना चाहते,
हमेशा उन्हें अपने पास रखना चाहते हैं 
और उनके पास रहने का प्रयत्न करते रहते हैं 
पर नियति क्रम के अनुसार लोगों को हमसे रुखसत लेनी ही पड़ती है। 
कभी रोजी रोटी के लिए, कभी दूसरी परिस्थितियों के चलते लोग हमसे बिछड़ जाते हैं
कभी कभी कुछ ऐसी मजबूरियाँ आ जाती हैं कि उनको हमसे बिछड़ना ही पड़ता है। 
हम भले इसे रोकने की कोशिश करते हैं लेकिन हमारा कोई नियंत्रण उस पर नहीं होता। 
दो मिनट के लिए आंखें बंद करके उन लोगों को याद कीजिये 
जो आपसे बिछड़ गए, जिनका बिछड़ना कहीं न कहीं कसकता है
शायद कुछ अधूरा सा छूट गया था, कोई बात,कोई मुलाकात, कोई अभिव्यक्ति
कुछ बताना रह गया, कुछ मनाना रह गया, 
उनके साथ के जितने पल नियति ने दिए थे उन्हें इधर उधर गँवा देने का मलाल बच गया
उनको तकलीफ पहुंचाने की टीस रह गयी, 
उनके साथ अच्छी यादें नहीं बना पाने, उन्हें ठीक से समझ नहीं पाने का दर्द रह गया।
ऐसे कुछ दर्द हमेशा के लिए रह जाते हैं। 
इसलिए जब तक जो प्रिय लोग आपके जीवन में हैं उनको समय दीजिये। 
खास कर उनको जिनके बिछड़ने की संभावना ज्यादा है, 
जिनका चला जाना आपको गहरे दर्द से भर देगा
उनसे अबोला छोड़ के बात कर लीजिए
उनके साथ जीवन के एक एक लम्हे को अच्छे से जी लीजिये,
उनके मन का कुछ कीजिये, उन्हें खास महसूस कराइये
उन्हें महसूस कराइये कि आपको उनकी परवाह है 
और आप उनको चाहते हैं सम्मान करते हैं
उनके साथ बैठिए, उनसे बातें कीजिये, उनकी ज़िंदगी के किसी न किसी खालीपन को भरिये। 
उनके दुखों उनकी वेदनाओं के बदले उनके साथ अपनी खुशियों को साझा कीजिये 
उनके भीतर की अशांति,खिन्नता,अप्रसन्नता और मलाल को कम करने में सहायता कीजिये। 
जिनसे बिछड़कर आपको बहुत दुख होगा, उनसे बिछड़ने की स्थितियों को पैदा न होने दीजिए। 
फिर भी अगर बिछड़ना नसीब में लिखा ही हो तो एक दूसरे के साथ संबंधों को 
इस तरह से निभा चुके हों कि एक दूसरे के दिल मे एक मीठी याद बनें न कि मलाल। 
दूर जाने का मतलब हमेशा अलग हो जाना नहीं होता
दूर रहकर भी संबंधों को बनाये रखा जा सकता है निभाया जा सकता है। 
यक़ीन मानिए, आपके जीवन मे आने और जाने वाले लोगों से ही 
आपका जीवन समृद्ध होता है, पूरा होता है, 
आपकी जीवन गाथा में उनका आना और जाना दोनो ही अपरिहार्य होते हैं।
इसलिए किसी को बांधिए मत, पर जोड़े रखिये। 
साथ हों तब भी, बिछड़ना पड़ जाए तो भी।
और जिसके जितनी जल्दी बिछड़ने की संभावना हो उसे उतना ज्यादा समय देकर देखिए
आपको बाद में एक बेहद गहरी तसल्ली मिलेगी कि कम से कम आप उनके साथ जी पाए, उन्हें वक़्त दे पाए। 

@ मन्यु आत्रेय

Sunday 4 April 2021

दुख दर्द से उबरने की दवा !!

आज कुछ देर शांत बैठकर आप ये हिसाब लगाइए कि आपके जीवन में 
किन किन बातों का दुख है किन किन बातों का दर्द है
कौन से दुख दर्द आवश्यकता और तीव्रता से अधिक आपने ढोये हैं?
आपको दुखों से उबरने की राह मिल जाएगी। 
दुख और दर्द की कोई चाहे जैसी परिभाषा दे ले 
आप भली भांति जानते हैं कि दुख क्या है, दर्द क्या है? 
मन के प्रतिकूल कुछ भी घटने से जो नकारात्मक मनोभाव हममें पैदा होते हैं 
जैसे खिन्नता, अप्रसन्नता, क्रोध उनके मूल में कहीं न कहीं दुख दर्द होता है।
दुख और दर्द जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। 
जन्म से लेकर मृत्यु तक हमें हज़ारों दुखों और दर्द का सामना करना पड़ता है। 
कुछ दर्द क्षणिक होते हैं, कुछ थोड़े समय रहते हैं, कुछ लंबे समय रहते हैं 
वहीं कुछ दुख कुछ दर्द सारी ज़िन्दगी रहते हैं। 
पहले तो हम उस दुख उस दर्द को स्वीकार ही नहीं कर पाते 
लेकिन बाद में हमें उसे स्वीकार करना ही पड़ता है धीरे धीरे हम उनके आदी होते चले जाते हैं। 
जैसे जैसे हम आदी होते जाते हैं वैसे वैसे उस दर्द उस दुख से 'एडजस्ट' करने लग जाते हैं। 
और हम उनके बीच जीना सीख जाते हैं, यही जिंदगी की सच्चाई है। 
आदमी बड़े से बड़े दुख को झेल जाता है, सह जाता है, बशर्ते वह उसे स्वीकार कर ले।
तकलीफ तब सबसे ज़्यादा होती है जब हम उस दुख उस दर्द को स्वीकार नहीं कर पाते। 
जब तक हम स्वीकार नहीं करते तब तक वह आंच पर चढ़े दूध की तरह उफनता रहता है। 
जो सच है उसे तो स्वीकार करना ही पड़ता है। 
ये बात सही है कि किसी भी दुख को एकदम से स्वीकार कर पाना कठिन होता है,
आदमी तुरंत किसी दर्द को स्वीकार नहीं कर पाता, 
स्वीकार न करते हुए भी उसका अस्तित्व उसी दुख उसी दर्द के आस पास आकर थम जाता है। 
आप जाने अनजाने उस दुख दर्द को सींचते रहते हैं
वो और सघन होता जाता है। 
अपने दुख दर्द ज़्यादा लोगों को बताने नहीं चाहिए
क्योंकि लोग जानकर समझकर भी कोई खास मदद नहीं कर पाते
बल्कि हमारे दुश्मन हमारे दुखों को जानकर खुश होते हैं, 
विघ्न संतोषी लोग हमारे दुखों की जड़ को सींचते हैं और उन्हें कभी समाप्त नहीं होने देते।
अपने दुख दर्द का प्रदर्शन कभी मत कीजिये अन्यथा तमाशा बन जाता है। 
उन लोगों को पहचानिये जो आपको दुखी करते हैं उनसे अपने संबंधों अपने नियंत्रण की सीमा पहचानिये, 
उन परिस्थितियों को पहचानिये जिनके चलते आप दुखी होते हैं 
अपने व्यक्तित्व के उन आयामों को पहचानिये जो बार बार आपको ऐसी स्थिति में उलझाते हैं 
कि आपके हिस्से में सिर्फ दुख दर्द आता है। उनसे दूरी बढ़ाइए और स्वीकार कीजिये जो कुछ आपके नियंत्रण में नहीं है, 
अपने नियंत्रण का दायरा धीरे धीरे बढ़ाया भी जा सकता है। 
असल मे सुख दुख का बहुत संबंध हमारे मन से होता है। 
जिसका मन जितना ज्यादा कोमल, सरल, कमज़ोर और आग्रही होता है
वह अपने मनोलोक में ही जीता है, उसे उतनी तकलीफ पहुंचती है
उसके हिस्से में उतने दुख उतने दर्द आते हैं
इसलिए मन को थोड़ा कड़ा कीजिये,मन को थोड़ा वास्तविकता के धरातल पर लाइये। 
अपने असली दुख दर्द और ओढ़े गए दुख दर्द में अंतर कीजिये और हर बोझ को उतार फेंकिये। 
धीरे धीरे आप हर दुख दर्द से उबर सकते हैं। 

@मन्यु आत्रेय

Friday 2 April 2021

सफाई पेश करने से पहले इसे पढ़ें।

अपनी सफाई पेश करना एक बहुत तकलीफ दायक काम है 
लेकिन जीवन में कई बार हम ऐसी परिस्थितियों में फंस जाते हैं कि
हमें अपनी स्थिति को स्पष्ट करना पड़ता है 
क्योंकि हमें गलत समझा जा रहा होता है या फिर समझा ही नहीं जा रहा होता। 
कभी-कभी स्पष्टीकरण हमें खुद देना पड़ता है क्योंकि हमको लगता है 
कि हम पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं 
कई बार हम से हमारी किसी बात को लेकर स्पष्टीकरण मांग लिया जाता है। 
अगर बार बार आपको सफाई पेश करनी पड़ रही है तो इसका मतलब है
या तो आपकी गतिविधि, आपके शब्द और आपका चरित्र संदिग्ध हो गया है
या लोग आपको समझ नहीं पा रहे और शायद आप भी खुद को नहीं समझ पा रहे हैं
या शायद आपमें आत्म विश्वास की बहुत कमी हो गई है 
या कहीं ना कहीं कोई अपराध बोध आपके भीतर है जिसे आप दूर करने के लिए स्पष्टीकरण दे रहे हैं 
स्पष्टीकरण देने से पहले यह बिल्कुल ध्यान रख लेना चाहिए 
कि स्पष्टीकरण मांगा किन बातों के लिए जा रहा है 
पहले मामले को अच्छे से समझ लेना चाहिए 
और जिस बात के लिये स्पष्टीकरण मांगा गया हो
सिर्फ उतनी बात के लिए ही सफाई पेश करना चाहिए
जब आपको अपनी ओर से सफाई पेश करनी पड़े 
तो पहले सामने वाले से टोह लीजिये 
ये जानिए कि इसे आखिर क्या स्पष्ट करना है?
क्योंकि वो जानना कुछ और चाहता है और हम हड़बड़ी में कुछ और ही बातें उसे बता जाते हैं
कभी कभी हम इतनी ज्यादा सफाई पेश कर देते हैं 
कि वह सफाई भी संदेह के दायरे में आ जाती है
कई बार स्पष्टीकरण देते देते हम ऐसे तथ्यों को भी उजागर कर देते हैं जिसकी जरूरत नहीं थी 
बाद में उन बातों को आधार बनाकर कुछ नए सवाल भी खड़े किए जा सकते हैं। 
आप कब किसे क्या सफाई पेश कर रहे हैं उससे आपके संबंध और स्थिति कैसी है, 
आप अपनी सफाई कैसे पेश कर रहे हैं ये महत्वपूर्ण होता है
जब तक आप उठाए गए अधिकांश सवालों के संतोषजनक जवाब नहीं दे देंगे 
तब तक स्पष्टीकरण का कोई अर्थ नहीं रहेगा परंतु आप हर एक सवाल का बिल्कुल ईमानदार जवाब नहीं दे पाएंगे 
क्योंकि सामने वाला किस बात को किस अर्थ में किस तरीके से लेगा आप नहीं जानते। 
कभी-कभी सफाई पेश करना रिश्ते को और अपनी स्थिति को खराब होने से बचा लेता है
और कभी कभी सफाई पेश करना रिश्ते में नया पेंच ला खड़ा करता है
अपनी सफाई पेश करना भी एक कला है। 
आप हर बार पूरी ईमानदारी से स्पष्टीकरण नहीं पेश कर सकते
इसलिए आपको अपनी स्थिति को स्पष्ट करने के अलावा बातों को घुमाना सीखना पड़ता है
सवाल का जवाब भी सवाल में देना पड़ता है, 
कुछ लोग सामान्य सी सफाई पेश करने की बजाए विक्टिम कार्ड खेल जाते हैं, वहीं कुछ लोग सफाई मांगने वाले की दुखती रग छेड़ने वाली बात उठा देते हैं। 
कुछ लोग भावनात्मक नाटक करते हैं कुछ लोग झूठे तथ्य और काल्पनिक बातें पेश करते हैं 
ये सब ज़्यादा चलता नहीं है। 
सफाई तब ही पेश करनी चाहिए जब अनिवार्य हो जाये। 
अपना स्पष्टीकरण आप अपने कामों के ज़रिए रखें तो बहुत बढ़िया। 
शब्दों से जब सफाई पेश करनी हो तो कम से कम और बिल्कुल उपयुक्त शब्द इस्तेमाल करें। 
सफाई मामले का पटाक्षेप करने वाली हो न कि नया लफड़ा शुरू करने वाली। 
यह ज़रूर ध्यान रखना है कि जगह जगह सफाई पेश करने में कोई लाभ नहीं। 
सिर्फ उस जगह सफाई पेश करना चाहिए जहां स्थिति स्पष्ट करने से सबको मानना पड़े। 
या जिसके असमंजस में रहने से आपको नुकसान हो उसे स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
मांगे जा रहे स्पष्टीकरणों की भाषा,समय, स्वरूप को समझ कर आप अपनी स्थिति का सही आकलन कर सकते हैं। 
स्पष्टीकरण मांगा जाना किसी बड़े आरोप का पहला चरण भी हो सकता है
इसलिए सफाई बहुत सोच समझ कर पेश कीजिये। 

@ मन्यु आत्रेय

Thursday 1 April 2021

काम उसे दो जो कर सके!

आप अपना हर काम खुद नहीं कर सकते
इसलिये आपको किसी ऐसे को खोजना पड़ता है जो आपका काम कर दे। 
एक दूसरे का काम करने से ही समाज में श्रम विभाजन सफल होता है। 
पर अक्सर ऐसा होता है कि आप भरोसा करके किसी को कोई काम सौंपते हैं 
और वो काम फिर कभी हो ही नहीं पाता। 
असल में कई लोग अपने कामों को भी लापरवाही से करते हैं 
तो फिर दूसरों के कामों को क्यों गंभीरता से करने लगे? 
जो भी व्यक्ति आपको जितना महत्वपूर्ण मानता है, आपकी परवाह करता है, 
आपको प्राथमिकता समझता है वह आपके कामों को भी महत्वपूर्ण मानकर 
प्राथमिकता से और अच्छे से अच्छे तरीके से करने का प्रयास करेगा। 
कई बार यह होता है कि व्यक्ति लोक व्यवहार निभाने के लिये ही सही 
आपका काम करवा देने का भरोसा दिला देता है,परंतु वह उसके प्रति उतना गंभीर नहीं होता। 
आपका गुप्त शत्रु कई बार आपके किसी महत्वपूर्ण काम का दायित्व 
स्वयं ले लेता है या अपने किसी खास को दिलवा देता है 
और काम को किसी ऐसे मोड़ में ले जाकर फंसवा देता है कि 
वह काम हो ही न पाये और आपको नुक़सान पहुंचे। 
आपके संबंध यदि किसी व्यक्ति के साथ खटास से भर गये हैं 
तो इस बात की संभावना हो सकती है कि उसे जो काम आपने दिया हो 
वो भी ठंडे बस्ते में चला जाये, जबकि वही काम यदि वो पूरा कर दे 
तो आप दोनों के बीच की बर्फ पिघल सकती है। 
इस दुनिया में बहुत से लोग सिर्फ दिखावे की ज़िंदगी जीते हैं। 
जिसकी जितनी पहुंच नहीं होती वह उससे कहीं ज़्यादा पहुंच दिखाता है। 
जिसके पास जितने संसाधन नहीं होते वह उससे कहीं ज्यादा हैसियत दर्शाता है, 
जिसकी जितनी साफ नीयत नहीं होती, वह उतना ज़्यादा स्वयं को ईमानदार दर्शाता है 
और लोग उसके झांसे में फंस जाते हैं, 
उसे अपना महत्वपूर्ण काम सौंप बैठते हैं, यहीं उनसे गलती हो जाती है। 
कुशल से कुशल तैराक को भी नदी में उतरने से पहले उसकी गहराई की थाह ले लेनी चाहिये। 
ऐसे ही किसी भी व्यक्ति को कोई बड़ा और महत्वपूर्ण काम सौंपने से पहले 
उसके व्यक्त्वि के बारे में गंभीरता से सोच लीजिये, 
यदि वो लापरवाह, अविश्वसनीय, आलसी या पेट में दांत रखने वाला लगता है 
तो उसे काम देने से परहेज़ कीजिये। 
किसी भी आदमी को एकदम बड़ा और महत्वपूर्ण कार्य सौंपने से पहले 
उससे छोटे छोटे काम करवा के देखना चाहिये कि वह कितनी गंभीरता से 
और अच्छे तरीके़ से वह काम कर रहा है। 
आप अनदेखे पत्तों पर बड़ा दांव खेलकर एक बड़ा जोखि़म मोल ले लेंगे। 
भूलकर भी किसी दुष्ट, दुर्जन और धोखेबाज आदमी को कोई काम नहीं सौंपना चाहिये, 
ये करते एक हैं और प्रचार दस करते हैं। पूरा रायता फैला देते हैं। 
सबसे अहम काम सबसे ज्यादा भरोसेमंद और परखे हुए व्यक्ति को ही दीजिये। 
और यह हमेशा याद रखिये कि काम सौंपते समय 
उसे थोड़ा बहुत अवश्य समझा दीजिये कि काम को कैसे करना है। 
यह भी कभी मत भूलिये कि दूसरे का किया हुआ काम पूरी तरह से 
आपके मन के मुताबिक होगा ही ये ज़रूरी नहीं है, 
हर आदमी अपनी समझ, प्रतिभा, समय और रूचि के अनुसार ही आपका काम करेगा, 
इसे स्वीकार करके चलिये। 
उसे सौंपे गये काम की प्रगति बीच बीच में जांचते रहें, 
यदि कभी भी लगे कि यह काम गलत तरीके से कर रहा है 
तो उसे समझाईये कि इसे ऐसे करना है। 
यदि वह टालमटोल, बहानेबाजी कर रहा है, गड़बड़ी कर रहा है, धोखा दे रहा है 
तो उससे काम वापस ले लीजिये, क्योंकि वह काम पूरा बिगड़ जायेगा, 
आपके समय, श्रम, संसाधन, संबंध सभी का नुक़सान होगा। 
लाख पते की बात तो यह है कि अपने सबसे अहम काम 
कभी किसी दूसरे को मत दीजिये उन्हें स्वयं ही कीजिये। 
आदमी का एक काम बिगड़ जाना कभी कभी पूरे जीवन की दिशा मोड़ सकता है 
इसलिये अपना कोई भी महत्वपूर्ण काम किसी को सौंपते समय 
बहुत गंभीरता से विचार कर लेना चाहिये।
जानकार, निष्ठावान, परखे हुए ईमानदार आदमी को ही काम सौंपना चाहिए। 

 @मन्यु आत्रेय

करीबी लोगों के प्रति हम लापरवाह हो जाते हैं

कुछ लोग जो हमारे करीबी होते हैं, अक्सर हम उनके प्रति लापरवाह हो जाते हैं। पति को पता नहीं चलता कि पत्नी किस शारीरिक समस्या से ज...