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Wednesday 31 March 2021

योजनाओं को गुप्त रखिये

हर आदमी अपनी महत्वाकांक्षाओं, इच्छाओं और सपनों को पूरा करना चाहता है 
और इसके लिये वह योजनायें बनाता है।
कुछ लोगों की आदत होती है अपनी योजना के सफल होने से पहले ही 
उसका प्रचार करने लग जाते हैं। 
 यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिये कि हमारे सपने, हमारी महत्वाकांक्षा, 
हमारी इच्छायें, हमारी ज़रूरतें और हमारी कोशिशें 
किसी न किसी के लिये बाधा पैदा कर सकती हैं, 
 किसी न किसी की महत्वाकांक्षा, इच्छा, सपने के आड़े आ सकती हैं। 
इसी से प्रतिस्पर्धा का जन्म होता है, परंतु यह प्रतिस्पर्धा कभी भी प्रतिद्वंद्विता बन जाती है।
आपके गुप्त शत्रु पनपने लगते हैं 
जो आपकी योजनाओं में व्यवधान पैदा करने लग जाते हैं। 
आपने कई बार ऐसा महसूस किया होगा 
कि आपकी किसी इच्छा को किसी की नज़र लग गई है। 
आपकी योजनाओं और आपकी गतिविधियों पर कई लोग नज़र जमाये बैठे होते हैं 
जिनके साथ भी आपकी दुश्मनी होती है, जो आपके प्रतिद्वंद्वी होते हैं, 
यहाॅं तक कि कई बार हमारे अपने भी हमारी योजनाओं में बाधा खड़ी कर देते हैं 
क्योंकि उन्हें लगता है कि हम गलत कर रहे हैं 
और हमें ठीक वैसा करना चाहिये जैसा वे चाहते हैं। 
अपनी योजना जितने कम लोगों के साथ साझा करेंगे उतना अच्छा होगा। 
सिर्फ़ उन्हीं लोगों से आप अपनी योजना बताईये 
जो लोग पूरी ईमानदारी से और तटस्थता से आपको 
आपकी योजना की कमिर्याॅ, संभावित खतरे इत्यादि बताकर 
उन्हें दूर करने में मदद कर सकें। 
किसी को भी अपनी योजना एकदम पूरे स्वरूप में नहीं बतानी चाहिये, 
बल्कि छोटे छोटे टुकड़ों में उसे बतानी चाहिये 
ताकि वह एकदम से सारी बात न समझ जाये 
और इस दरमियान उसकी प्रतिक्रियाओं और हाव भाव को अवश्य देखना चाहिये। 
आपकी पीठ पीछे वह आपकी बातों को लेकर दूसरों के सामने 
क्या और कैसी प्रतिक्रिया दे रहा है 
इसकी जानकारी यदि आप ले सकें तो बेहतर होगा 
क्योंकि इससे आपको इस निष्कर्ष पर आने में मदद मिलेगी कि 
इससे अपनी योजना साझा करनी है भी या नहीं। 
एक बात यह ज़रूर है कि किसी भी योजना को पूरा करने के लिये 
कई बार कुछ लोगों की ज़रूरत पड़ती है, उनकी मदद उनकी प्रेरणा 
उनके संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है, 
उन्हें इसलिये काफी कुछ बताना भी पड़ता है, 
परंतु प्रयास करें कि किसी भी गलत व्यक्ति को अपनी योजना न बतायें, 
गलत व्यक्ति से न तो मदद लें और न ही किसी प्रेरणा की अपेक्षा करें। 
यह  प्रतिद्वंद्विता से भरा हुआ विश्व है, यहाॅं एक ही चीज़ कईयों का स्वप्न है। 
गला काट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अगर आप अपने सारे पत्ते खोल देंगे 
तो आपको कोई न कोई मैदान से बाहर कर देगा। 
ये भी हो सकता है कि कोई आपकी योजना में सहयोगी बन कर जुड़े
गलत सलाह दे और गलत दिशा में ले जाये, 
आपकी सफलता में सेंध लगा दे। 
ये भी हो सकता है कि आपकी योजना को पूरा होने में जब समय लगेगा 
तो लोग हंसी उड़ाकर आपको नीचा दिखाने से बाज़ नहीं आयेंगे 
इसलिये अपनी योजना को गोपनीय रखें 
और सफल होकर लोगों को भौंचक्का कर दें।

@ मन्यु आत्रेय

Friday 26 March 2021

थोड़ा डर होना अच्छा है !

हर प्राणी को कोई न कोई डर होता है। थोड़ी मात्रा में डर अच्छा है। 
जब हम किसी स्थिति और अपनी क्षमता की तुलना करते हैं 
और जब हम खुद को उस परिस्थिति का सामना करने के अक्षम पाते हैं 
तो हममें डर पैदा होता है। 
किसी को अपने पुराने कर्मों से डर लगता है किसी को नई परिस्थितियों से डर लगता है।
थोड़ा डर हमें सजग बनाता है, हमें उस स्थिति का सामना करने की 
अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। 
थोड़ा सा डर हमें रोमांचित करता है, हमें हालात से निपटना सिखाता है। 
जब हम लोगों को खो देने से डरते हैं तो उनकी कदर और परवाह करने लगते हैं। 
जब हम बीमार पड़ने से डरते हैं तो अपनी सेहत का ध्यान रखने लगते हैं। 
जब हम किसी परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने से डरते हैं तो पढ़ने को प्रेरित होते हैं। 
जब हम गिरने से डरते हैं तो संभलकर चलना प्रारंभ कर देते हैं। 
दुर्घटना हो जाने का डर हमें संभलकर गाड़ी चलाने को प्रेरित करता है। 
काम छूट जाने का डर हमें ज़्यादा अच्छा काम करने 
तथा वैकल्पिक रास्ते खोजने के लिए प्रेरित करता है। 
बदनामी का डर हमें गलत काम करने से रोक लेता है। 
जेल जाने का डर अपराध करने से हमें रोकता है। 
डर आपको असुरक्षित परिस्थितियों में जाने से बचा लेता है। 
जिस चीज़ के प्रति भी आप में थोड़ा डर आ जाता है आप उसे और जानने की कोशिश करते हैं। 
थोड़ा सा डर नकारात्मक अभिप्रेरणा का साधन बन जाता है। 
थोड़ा डर लापरवाही को कम करता है। आप सजग होकर सब कुछ करने लगते हैं। 
कई बार हम निराधार कारणों से ही डरते रहते हैं। 
डर का मूल है सामना नहीं कर पाने की धारणा। 
आप उसी से डरते हैं जिसका सामना नहीं कर सकते। 
जैसे जैसे आप अपने डर की विषय वस्तु के बारे में जानने लगते हैं 
आपका डर कम होने लगता है। 
आपको जिससे भी डर लगे उसके बारे में अपना ज्ञान बढ़ाइए। 
उसका सामना करने की अपनी क्षमता बढ़ाइए। 
डर की ओर से आंखें मूंद लेना आदमी को दुस्साहसी बना देता है
जबकि डर के होते हुए भी हिम्मत का होना साहसी बनाता है। 
डर की उपस्थिति आपके जीवन में नमक जैसी होनी चाहिए,
थोड़ा सा ज़रूरी है जिससे जीवन मे स्वाद बढ़ता है 
परंतु उसी की अधिक मात्रा ब्लड प्रेशर बढ़ा देती है। 
आज एक काम कीजिये, अपने हर एक छोटे बड़े भय की सूची बनाइये। 
उन भयों के कारण लिखिए कि ये भय क्यों है? 
उन भयों के साकार होने की आवश्यक शर्तें और संभावना का प्रतिशत लिखिए। 
उन भयों को बढ़ाने वाले कारकों को लिखना न भूलिए। 
उनसे निपटने के लिए आवश्यक क्षमता या गुणों को भी लिखिए। 
आप अपनी स्थिति को अच्छी तरह से समझ जाएंगे 
और इससे आप अपने गैर जरूरी भय के चंगुल से निकल सकते हैं। 

@ मन्यु आत्रेय

Thursday 25 March 2021

आपदा में छिपे अवसर पहचानिये!!

संकट, विपत्ति और आपदा ऐसे शब्द हैं जिन्हें शायद ही कोई पसंद करे,
लेकिन इनका आना सभी के जीवन में अनिवार्य होता है,
चाहे छोटे रूप में चाहे बड़े रूप में। 
जीवन की तल्ख सच्चाइयों से हमारा परिचय हम पर आने वाले संकट ही तो कराते हैं, 
आपदाएं ही तो हमसे जुड़े लोगों की असली पहचान हमें कराती हैं 
विपत्ति ही तो हमें उन लोगों का असली चेहरा दिखाती हैं 
जो हमारे अच्छे समय में हमारे हितैषी होने का दम भरते थे।  
संकट अक्सर गुप्त दुश्मनों की भी पहचान करा देता है
संकट हमारे हौसले को परखते हैं, विपत्तियां हमारे संघर्ष करने की क्षमता को जांचती हैं। 
आपदाएं हमें तैयार रहना सिखाती हैं । 
हम घबराते सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि हमने पहले कभी ऐसी स्थितियों का सामना नहीं किया होता,
हमें मालूम नहीं होता कि इस स्थिति से बाहर कैसे निकला जा सकता है? 
जब हम इसमें फंस जाते हैं तो धीरे धीरे स्थिति परिस्थितियां हमे समझ आने लगती हैं 
और अगर हम थोड़ा सा नियंत्रण अपनी भावुकता पर रख कर 
अपनी तार्किक बुद्धि और अपनी अनुभूति को जोड़ कर सोचते हैं 
तो हमें वैकल्पिक रास्ते सूझने लगते हैं। 
दुनिया के बड़े से बड़े संकट को एक दिन बीत जाना पड़ता है
बड़े से बड़े तूफान में यदि आपने अपने पैर जमाये रखे हैं तो आप बच सकते हैं 
संकट की सबसे बड़ी खासियत ये होती है कि यह आपका परिचय 
आपकी ऐसी विशेषताओं से कराता है जिनके बारे में आप पहले जागरूक नहीं थे।
संकट में अगर हमारे लोग हमें छोड़ जाते हैं तो कुछ नए लोग हमारी मदद करने आते ही हैं
विपत्ति अगर हमारा कुछ छीन लेती है, और हम बच जाते हैं 
तो खोया हुआ सब कुछ दोबारा हासिल करने की हिम्मत हमें मिल सकती है,
कई बार आपदाएं हमें कई ऐसे गैर ज़रूरी मामलों से बचा लेती हैं 
जिसमे हम व्यर्थ का उलझे हुए थे,
हमें अपनी असली प्राथमिकताएं संकट के समय ही समझ आती हैं। 
संकट आपकी जिजीविषा से आपका परिचय कराते हैं
आपको नई चीजें सिखाते हैं, नई जगहें दिखाते हैं,
अगर विपत्ति आपकी जड़ों को उखाड़ भी दे तो भी इसकी संभावना बची रहती है 
कि आप किसी नई जगह पर अपनी जड़ें फिर जमा सकें। 
संकट, विपत्ति या आपदा को अगर सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए 
तो वह खुद आगे बढ़ने का रास्ता बनाते हैं, आपकी नई सफलता की नींव बन सकते हैं। 
जिस आदमी को लगातार छोटे छोटे संकटों, विपत्तियों का सामना करना पड़ता है 
वह उस आदमी की तुलना में कहीं ज़्यादा ताकतवर हो जाता है 
जिसने कभी किसी संकट, किसी विपत्ति का सामना नहीं किया
क्योंकि संकट हमारे मस्तिष्क को लड़ने की कला सिखाते हैं । 
जिस संकट को आप पहले झेल चुके होते हैं, दोबारा उसके आने पर आप उतना घबराते नहीं
क्योंकि आप जानते हैं इससे कैसे पार जाना है। 
जब कभी कोई संकट आये तो धैर्य और शांति बनाए रखें। 
अपनी क्षमताओं की सच्ची समीक्षा कीजिये, सहायता के हर संभव मार्ग खोजिए
कुछ न कुछ खोने की मानसिक तैयारी रखिये
और उस आपदा से भिड़ जाइये। 
इस तरह से आप न सिर्फ उस संकट से उबर सकते हैं 
बल्कि आपदा में छुपे हुए अवसर भी तलाश सकते हैं। 

@ मन्यु आत्रेय

Wednesday 24 March 2021

अपने प्रति ईमानदार कैसे रहें?

आप दुनिया में सभी के प्रति ईमानदार नहीं रह सकते
क्योंकि आपके करीबी लोगों के हित अहित आपस में टकराते हैं 
ऐसे में किसी एक के प्रति ईमानदार होना आपको दूसरे के प्रति ईमानदार नहीं रखता।
पर आप इतना ज़रूर कर सकते हैं कि चाहे जो भी स्थिति हो आप अपने प्रति ईमानदार रहें। 
अपने प्रति ईमानदार रहने का मतलब है खुद को किसी भी धोखे में न रखना
किसी ऐसी बात पर विश्वास नहीं करना जिस पर विश्वास करने का पर्याप्त आधार नहीं हो,
किसी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा नहीं करना जिसके प्रति आशंका हो कि ये भरोसा तोड़ देगा। 
अपने प्रति ईमानदार होने का मतलब है खुद से ढोंग नहीं करना, 
कम करके ज़्यादा नहीं दर्शाना, बेवजह के बहाव में नहीं उलझना। 
अपने प्रति ईमानदार होने का मतलब है जितनी आपकी क्षमता है उतना पूरा प्रयास करना।
किसी प्रकार के अंतर्द्वंद्व में रहने वाला आदमी अपने प्रति ईमानदार नहीं रहता। 
अपने प्रति ईमानदार रहने के लिए आपको उस विश्वास को छोड़ना होगा
जो आपको बिना किसी तार्किक संभाव्यता के किसी पर निर्भर करे। 
अपने प्रति ईमानदार होने के लिए आपको अपने शरीर, अपने मन और अपनी आत्मा तीनो से उठने वाले बारीक संवेदनों पर 
गहरी दृष्टि रखनी होगी और उनके प्रति जागरूक रहना होगा, अनदेखी बन्द करनी होगी। 
अपने प्रति ईमानदार आदमी अपने दुख को सुख के दिखावे की पोशाक नहीं पहनाता। 
जो जैसा है उसे वैसा ही देखना अपने प्रति ईमानदार होने की शर्त है। 
जब आप अपने प्रति ईमानदार रहते हैं तो दूसरों के प्रति भी ईमानदार रह पाते हैं 
एक ईमानदार आदमी अपने रिश्तों को पूरा सम्मान दे पाता है। 
अपने काम को अपने शौक को अपने से जुड़ी हर चीज़ को गम्भीरता से लेता है। 
एक छोटी सी बात समझने वाली यह है कि 
कई बार हम जिसे स्वयं के प्रति ईमानदार होना समझते हैं 
वह असल में स्वार्थी होना होता है। 
जब आप अपने हित को भी ध्यान में रखते हैं तो आप अपने प्रति ईमानदार होते हैं
और जब आप सिर्फ अपने हित का ध्यान रखते हैं दूसरों का चाहे अहित हो जाये, 
तो आप स्वार्थी हो रहे हैं, आपको अपने प्रति ईमानदार होना है न कि स्वार्थी। 
कई बार लोग उस व्यक्ति को गलत समझते हैं जो अपने प्रति ईमानदार हो रहा होता है। 
उसे अहंकारी,स्वार्थी,लालची, अकडू न जाने क्या क्या कह सकते हैं 
परंतु असल में अधिकांश लोग ऐसे ही होते हैं कुछ लोग परमार्थ का मुखौटा पहने होते हैं। 
जब आप अपने प्रति ईमानदार होते हैं तो आप अपने आप को अनावश्यक वंचित नहीं रखते,
आत्म वंचना से पीड़ित नहीं होते। 
कभी कभी अपने आप को केंद्र में रखकर कुछ लोग अपराध बोध से ग्रस्त हो जाते हैं 
परंतु यह अपराध बोध गलत होता है, और कहीं न कहीं अपने प्रति 
ईमानदार नहीं होने का संकेत करता है। 
जब सारी दुनिया स्वार्थ के पथ पर चल रही हो तो अपने प्रति ईमानदार होना ज़रा भी गलत नहीं। 
अपने प्रति ईमानदार होना, व्यर्थ के झमेलों में फंसने से बचा लेता है, 
नुकसान में पड़ने से रोक लेता है, दुर्जन लोगों की पहचान करा देता है, 
अपने प्रति ईमानदार होना तटस्थ होने का अवसर देता है। 
अपने प्रति ईमानदार आदमी खुद से झूठे बहाने नहीं बनाता
वह अपनी समीक्षा पूरी ईमानदारी से करता है,
उसे अपनी खासियत भी दिखती है और खामियां भी। 
वह अपने अतीत को भी स्वीकार करता है,वर्तमान को भी और भविष्य को भी। 
अपने प्रति ईमानदार होना उन्नति की सबसे ज़रूरी चाबी है। 
इसे संभाल कर रखिये। 

@मन्यु आत्रेय

Tuesday 23 March 2021

अहम छोड़ो रिश्ते जोड़ो!!!

रिश्तों को अगर किसी चीज़ से सबसे अधिक नुक़सान पहुंचता है तो वह है अहम की लड़ाई। 
दो लोग जब अपने रिश्ते को अपने विचारों के केंद्र में रखते हैं तो रिश्ता मज़बूत होता है,
परंतु जब वही लोग अपने अपने विचार, प्राथमिकताओं, ज़रूरतों 
और अहंकार को रिश्ते के बीच में ले आते हैं तो रिश्ता कमज़ोर हो जाता है। 
जिसका अहम जितना ज्यादा प्रबल होता है वह उतना ज्यादा चोटिल होता है। 
छोटी छोटी बातें, भीतर तक गहरा वार कर जाती हैं । 
अहम में आप अपने आप को बाक़ी सबके ऊपर रखने लग जाते हैं। 
अगर सामने वाला आपके सामने झुक जाता है तो इसका अर्थ है 
उसने अपने ऊपर अपने रिश्ते को रखा है, आपको रखा है 
आप अहम की लड़ाई में जीतकर भी रिश्ते की लड़ाई हार सकते हैं। 
अक्सर रिश्ते को बचाने के लिए एक को अपने अहम की कुर्बानी देनी पड़ती है 
आप इसे अहम कह लें या स्वाभिमान। 
जब एक ही पक्ष को लगातार झुकना पड़े, तो उसका दमन हो जाता है, 
उसका आत्मबल कमज़ोर हो जाता है, 
एक सुंदर रिश्ते को कुचल दिया जाता है। 
आपको पता नहीं चलता लेकिन लोग रिश्ते निभाते हुए दूसरों के अहम को 
बढ़ाते चलते हैं, उनका दुर्व्यहार सहते हैं, उन्हें अवांछित प्राथमिकता देते हैं 
उन्हें उनकी पात्रता से बढ़कर सब कुछ देते हैं इससे सामने वाला स्वयं को 
वह सब पाने का हक़दार और आपको देने के लिए बाध्य समझता है। 
बाद में जब आप किसी मौके पर वह उसे नहीं दे पाते तो उसका अहम चोटिल हो जाता है।
वह नाराज हो जाता है, आपका अपमान करने लगता है, आपको मजबूर करने लगता है, 
अहम वो नाग है जिसके सामने जितना सर झुकायेंगे वो उतना फन फैलाता है। 
बहुत बार आदमी ज़िद पर आ जाता है और फिर रंग बदरंग होते देर नहीं लगती। 
जब आपको हर मामले में सामने वाले की गलती दिखे,
जब आपको उस पर क्रोधित होने का सही कारण समझ नहीं आ रहा हो 
जब आप शांति से सोचने की बजाए उग्र होकर सोच रहे हों,
जब विचार तर्क सम्मत न होकर ज़िद्द पर टिक गए हों 
तो समझिए आप अहम की ज़िद लेकर चल रहे हैं। 
ज़िद में आकर आदमी गलत निर्णय लेता है, सब कुछ बर्बाद करने पर तुल जाता है। 
आसानी से विघ्न संतोषी लोगों के हाथों की कठपुतली बन जाता है। 
एक रिश्ते में शुरू से ही सामने वाले को उस रिश्ते से ज़्यादा बड़ा महसूस नहीं कराना चाहिए,
बहुत ज़्यादा विशिष्ट अनुभव नहीं कराना चाहिए
अन्यथा उसकी अपेक्षाएं बढ़ती जाती हैं और उसे जब आप पूरा नहीं कर पाते तो 
सामने वाला आप में अपराध बोध भर देता है या आप आत्म वंचना के शिकार हो सकते हैं। 
रिश्ते बचाने के लिए किसी के भी अहम को पोषित नहीं करना चाहिए।
बल्कि उस रिश्ते की जो सबसे खूबसूरत बात हो सकती है जैसे कि, 
परस्पर सहयोग, भरोसा, सम्मान, एक दूसरे की परवाह, स्नेह और प्रेम आदि 
उनको बढ़ावा देना चाहिए, तब ही रिश्ता मज़बूत बनता है। 
लोक व्यवहार और रिश्ते निभाना अक्सर आदमी को कष्ट देता है। 
वही तो कीमत है सुंदर रिश्तों की, आप अपने आप पर किसी व्यक्ति 
किसी संबंध को प्राधान्य दे रहे हैं अपनी ओर से इस रिश्ते में कुछ निवेश कर रहे हैं। 
इसलिए अहम को तोड़ना हमेशा बेहतर होता है। अपना अहम छोड़ना और सामने वाले को उसके अहम से बाहर आने में मदद करना 
एक रिश्ते में आबद्ध दो लोगों को और भी ज़्यादा मजबूती से जोड़ देता है। 
इसलिए अहम छोड़ो,रिश्ते जोड़ो। 

@ मन्यु आत्रेय

Monday 22 March 2021

उधार के गड्ढे में गिरने से पहले

जीवन में कई बार ऐसी स्थिति आती ही है कि आपको 
या तो किसी से उधार लेना पड़ता है या किसी को उधार देना पड़ता है। 
कई बार आप नहीं चाहते लेकिन आपको मजबूरी में उधार देना या लेना ही पड़ता है। 
एक स्वाभिमानी आदमी उधार लेने से कोसो दूर रहता है। 
उधार लेना पहले शर्म की बात थी लेकिन अब उधार लेना आम व्यवहार हो गया है। 
उधार देते या लेते दोनों समय आपको बहुत सतर्क रहना चाहिये। 
उधार लेते समय इस बात पर एक बार विचार ज़रूर कर लेना कि
ऐसी नौबत क्यों आयी कि मुझे उधार लेना पड़ रहा है? 
क्या इस स्थिति को रोका जा सकता था? 
आगे मैं अपनी जीवन चर्या में क्या परिवर्तन लाऊॅं कि मुझे उधार न लेना पड़े? 
जो रूपये मैं उधार ले रहा हूॅं उसे नियत अवधि में लौटा पाना मेरे लिये संभव है या नहीं? 
मेरे वित्तीय प्रबंधन में ऐसी क्या कमियाॅं हैं, ऐसी क्या चूक मेरी है 
जिसके कारण मेरे अपने आर्थिक संसाधन पूरे नहीं पड़ रहे हैं?
बहुत ज़्यादा आवश्यकता हो और कोई दूसरा पर्याय उपलब्ध नहीं हो 
तब ही उधार लेना चाहिये क्योंकि उधार प्रेम और शांति की घुन है, 
जो धीरे धीरे रिश्ते को खाती जाती है। 
किसी को उधार देने से पहले भी एक बार गौ़र से सोचना ज़रूरी है। 
उधार मांगते समय आदमी एकदम मेमने जैसा निरीह बनता है, 
और जब पैसा वापस करने की बारी आती है तो वही बब्बर शेर हो जाता है। 
कुछ लोगों से उधार की रक़म वापस निकलवाना 
शेर के मुंह से शिकार छीनने से भी कठिन काम होता है। 
जिसने उधार मांगा है, उसकी सिर्फ वर्तमान बातों पर मत ध्यान देना, 
बल्कि उसकी जीवन शैली, उसकी बुरी आदतों, उसकी फ़िजू़लखर्ची 
और शाह मिज़ाजी पर भी ध्यान देना चाहिये। 
अगर कुंए में पैसे डालकर भूल जाने का शौक़ हो 
तो ही बिना विचारे किसी को पैसे उधार देना। 
परंतु इतना याद रखना कि जब भी आप
किसी अपात्र आदमी को उधार देकर अपने पैसों का घाटा सहते हैं 
तो आप अपने घरवालों, पत्नी, बच्चों, माता पिता या भाई बहन 
किसी न किसी व्यक्ति का हक़ मारते हैं, 
आप उस आदमी के साथ नाइंसाफ़ी करते हैं
जिसकी मदद आपको वाक़ई करनी चाहिये थी।
कुछ लोग बेहद मजबूर होने पर भी उधार नहीं मांग पाते, उन्हें ज़रूर मदद करनी चाहिये। 
कुछ लोग थोड़ा बहुत सकुचाकर उधार मांग लेते हैं, 
उनसे पूछताछ कर उनकी पैसे लौटा पाने की क्षमता के अनुसार ही उधार देना चाहिये। 
कुछ लोग आदतन उधार मांगते ही रहते हैं, 
ऐसे लोगों को सिर्फ उतना उधार देना चाहिये 
जितने की हानि सहने की आपकी क्षमता हो। 
कभी कभी अपना बेहद करीबी आदमी थोड़ा थोड़ा करके 
बड़ी रकम उधार ले लेता है और फिर हाथ खड़े कर देता है, कभी लौटाता नहीं। 
कभी कभी चालबाज लोग पहले छोटे उधार लौटा कर भरोसा जीतते हैं 
और फिर बड़ी रकम उधार लेकर हड़प जाते हैं।
जब भी थोड़ी बड़ी रक़म की बात हो तो विधिवत लिखा पढ़ी करके 
या फिर उधार लेने वाले पर दबदबा रखने वाले लोगों की साक्षी में ही उसे पैसे देने चाहिये,
लिखा पढ़ी कर लेना और खाते में पैसे भेजना ही ज़्यादा सही है। 
जिस पर पहले से बहुत कर्ज़ है उसे उधार देना बेकार है। उधार एक ऐसी दलदल है जो उधार लेने और देने वाले दोनो को डुबो देती है। 
जब भी उधार मांगने वाले पर आपको शक हो 
उससे उधार की रक़म के उपयोग के बारे में विस्तार से प्रश्न पूछिये 
और वापस कब तक एवं कैसे करेगा इस पर भी खुलासा करवाईये, 
यदि वह गोल मोल जवाब दे, तो उसे उधार देने से परहेज़ कीजिये। 
लोग अक्सर उसी से उधार मांगते हैं जिससे सबसे आसान शिकार समझते हैं। 
जिससे पैसा वसूल करने का दम आप में नहीं हो, उसे भूलकर भी कभी उधार मत दो। 
जो उधार दे चुके हो तो उधार लेने वाले का आपके प्रति रवैया 
किस प्रकार बदल रहा है उसका अध्ययन करते रहो। 
उधार के पैसे दबा लेने वाला अक्सर गायब हो जाता है, 
फोन करना या काॅल उठाना बंद कर देता है, 
देखकर रास्ता बदल लेता है, नए नए बहाने नई नई तारीखों पर बनाता है,
ये संकेत सही नहीं हैं, इसलिये सतर्क हो जाईये। कई बार उधार हमें धर्म संकट में ला खड़ा करता है, 
अंतरात्मा इन्कार करती है परंतु परिस्थितियाॅं और संबंध दबाव डालते हैं, 
ऐसे में हमेशा विवेक से काम लेना चाहिये। 
जिस पर जितना भरोसा हो, जिसकी जितनी वापस करने की क्षमता हो, 
जिसकी जैसी नीयत रही हो उस पर सिर्फ उतनी रक़म का दांव ही खेलना, 
क्योंकि जब सामने वाला मुकर जायेगा तो आपकी आत्मा बहुत पीड़ा पायेगी, 
जान जल जायेगी, उससे अपना ही नुक़सान है।
जिसे उधार नहीं देना हो उसे टरकाने के बहाने सोच के रखिये। 
जिसे सीधे मना करना संभव हो उसे सीधे मना कर दीजिये। 
किसी को उधार देने के लिये किसी और से उधार लेना अक़्लमंदी नहीं है। 
हर एक व्यक्ति के लिये अपनी सीमाओं की परख कर के रख लीजिये 
कि इसके लिये इससे ज्यादा नहीं कर पाऊॅंगा।  
व्यावहारिक दृष्टिकोण है अपनाइए, भावुक मत होइए
क्योंकि मेहनत मशक्कत की कमाई किसी उधारबाज़ की ऐयाशियों पर खर्च करने के लिए नहीं होती। 

@ मन्यु आत्रेय

Sunday 21 March 2021

सिर्फ अच्छा होने से काम नहीं चलता

आपने यह बात कभी न कभी जरूर सुनी होगी 
कि यदि आप अच्छे हैं तो जग भी अच्छा है 
यह अपने आप को कहा गया एक बहुत बड़ा झूठ है 
क्योंकि सिर्फ आपके अच्छा होने से काम नहीं चलता 
यह दुनिया दुर्जन दुष्ट स्वार्थी ईर्ष्यालु और शत्रुता पूर्ण लोगों से भरी हुई भी है 
जो एक अच्छे व्यक्ति को लूट लेने, उसका दमन करने, उसका फायदा उठा लेने 
और उसे नष्ट कर देने से चूकती नहीं है 
इसलिए इस मामले में आदर्शवाद को छोड़ कर 
वास्तविकता से भरा दृष्टिकोण अपनाना ज्यादा अच्छा होगा 
आप किसे अच्छा कहेंगे और किसे बुरा कहेंगे?  आप कह सकते हैं कि अच्छा आदमी वह है जो कभी किसी का बुरा नहीं करता 
कभी किसी के बारे में बुरा नहीं कहता 
कभी किसी के बारे में बुरा नहीं सोचता 
हमेशा सब की मदद करता है, सुख दुख में काम आता है,
इससे क्या लोग उसके बारे में बुरा बोलना उसके बारे में बुरा सोचना 
उसके बारे में बुरा करना बंद कर देते हैं? 
सिर्फ एक बार लोगों की अपेक्षा पूरी करना भूल जाएं 
तो लोग पिछले सारे अहसान भूल जाते हैं 
एक गलती पिछली सारी अच्छाइयों को मिटा देती है 
कोई भी व्यक्ति चाहे अच्छा हो या बुरा हो 
अगर दूसरे लोगों के सपनों, इच्छाओं, 
प्राथमिकताओं, महत्वाकांक्षाओं उनके इरादों और उनके रास्ते में बाधा बनता है 
तो लोग निर्दयतापूर्वक उस व्यक्ति को अपने रास्ते से हटाने में जुट जाते हैं 
आपस में गठजोड़ करके षड्यंत्र करने लगते हैं 
और उस व्यक्ति को मिटा कर ही दम लेते हैं 
आप चाहे लाख अच्छे हो लेकिन किसी न किसी के लिए आप एक बाधा होते ही हैं
आप जिसके लिए भी बाधा बनते हैं वह आप को तोड़ने में जुड़ जाता है
वैसे भी एक अच्छा आदमी होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है 
ओढ़ी गयी अच्छाई बहुत महंगी पड़ती है
सच्चाई ये है कि सिर्फ अच्छा होने से काम नहीं चलता 
अच्छा होने के साथ-साथ आप को होशियार, 
सारी दुनियावी बातों को समझने वाला और ताकतवर होना भी जरूरी है 
एक अच्छा आदमी अगर कमजोर है तो लोग उसे कुचल कर रख देते हैं 
एक अच्छा आदमी यदि होशियार नहीं है तो वह अपने हितों की रक्षा नहीं कर पाता 
एक अच्छा आदमी समझदार नहीं है तो वह भावनात्मक शोषण से खुद को बचा नहीं पाता 
एक अच्छा आदमी अगर यह मानकर चलता है कि सारी दुनिया उसकी तरह अच्छी है 
तो वह असल में अपने आप को अंधे कुएं में ढकेल रहा होता है
इसलिए सिर्फ अच्छा होना काफी नहीं है 
अच्छे आदमी को अपनी आंखों पर से अच्छेपन के आदर्शवादी चश्मे को 
उतार कर दुनिया और लोगों को ठीक वैसा देखना चाहिए जैसे वे हैं। 
आदमी सबके लिए अच्छा हो भी नहीं सकता, 
अपनी अच्छाई को महिमा मंडित रखने के लिए अपने करीबी और निर्भर लोगों के 
हितों की अनदेखी करना या उसकी बलि दे देना उनकी नज़र में बुरा बना ही देगा। 
अच्छे आदमी पर लोग अपनी अपेक्षाओं का सारा भार लाद देते हैं 
अच्छा आदमी गधे की तरह दूसरों के सपनों, दूसरों की प्राथमिकताओं, 
दूसरों की ज़रूरतों और मनोदशा के अनुसार अपने जीवन को ढालता रहता है
और अंत मे अपयश का भागी भी वही बनता है 
अच्छा आदमी कई लोगों के लिए सिर्फ एक बलि का बकरा होता है
इसमे कोई शक नहीं कि आदमी को अच्छा होना चाहिए, 
लेकिन उसे अच्छा होने के साथ साथ होशियार, सतर्क, समझदार और ताकतवर भी होना चाहिए,

@मन्यु आत्रेय

Friday 19 March 2021

हमेशा डांटना लताड़ना क्या ठीक है?

कुछ लोगों की आदत होती है किसी को हमेशा डांटते डपटते रहने की,
आते जाते कारण अकारण बस कोई न कोई चुभती हुई बात कहने की, 
आपका बेटा मोबाइल देख रहा होता है और आप उसे उसके भविष्य के बर्बाद होने
और पिछड़ जाने पर भाषण पिला देते हैं
आपके जीवन साथी से कोई चूक होती है और आप बेवजह
आने वाले कई दिनों तक उसे सुनाते रहते हैं, 
आपके कार्यस्थल पर आपका कोई साथी या अधीनस्थ कोई काम 
आपके निर्देश या मानक के अनुसार नहीं करता और आप 
उस पर चढ़े रहते हैं उलाहना देते हैं, उसकी क्षमता पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं 
आप मौके तलाशते रहते हैं कि कैसे किसी को सुनाया जाए।
लताड़ लगाना, अपमानित करना, नीचा दिखाना, व्यंग्य वक्रोक्ति करना, डांटना
कुछ लोगों का सबसे पसंदीदा खेल होता है
पर वो ये नहीं सोचते कि सामने वाले को इससे 
कितनी ज़्यादा तकलीफ पहुंचती होगी
वो कितना दमित महसूस करता होगा? 
वो कितना घुटता होगा, आपके प्रति कितना नकारात्मक हो जाता होगा! 
कोई फायदा नहीं है ऐसे किसी को भी डांटने, लताड़ने में। 
कोई आपकी बात तब मानता है जब आप प्रभावशाली तरीके से उसे कहें 
न कि सिर्फ हड़काते हुए, या डराते धमकाते हुए, या उग्र निंदा के तरीके से । 
जब आप एक बार इस राह पर चलना चालू करते हैं तो फिर चलते ही जाते हैं 
और अपने लोगों से दूर होते जाते हैं 
आपकी आदत हो जाती है फिर आपके व्यक्तित्व की पहचान बन जाती है
कोई भी एक ही दिन में खडूस नहीं बन जाता, ऐसे ही धीरे धीरे लगातार ऐसी हरकतें करने से ही एक खडूस तैयार होता है
और कोई भी खडूस को पसंद नहीं करता।
आपको जब स्थिति अपने नियंत्रण से बाहर जाती दिखती है आप ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं 
या आप सामने वाले को लेकर इस हद तक चिंतित दिखना चाहते हैं 
ताकि कल को कोई आप को ज़िम्मेदार न ठहरा सके
दरअसल आपने पहले उसे पर्याप्त समय ही नहीं दिया होता, 
और स्थिति पर अपना नियंत्रण बचाने आप हड़बड़ा कर ऐसे दबाव बनाते हैं ।
आपका ये खेल सिर्फ तब तक ही चलेगा जब तक सामने वाला 
आपको पलट के जवाब नहीं दे देता, या आपकी उपेक्षा करना चालू नहीं कर देता
दोनो ही दशाओं में आपका दिया अपमान वापस घूम कर आप तक ही पहुंचता है
और ऐसा नहीं है कि लोग आपके इस कृत्य की बहुत सराहना करेंगे
क्योंकि लोग जानते हैं कि असल में जो जितना कमज़ोर होता है 
वो उतना ज्यादा नकारात्मकता फैलाता है
आपकी छवि एक नकारात्मक आदमी की बनने लगती है,
लोग आपसे दूर भागने लगते हैं, आपसे कुछ भी साझा नहीं करते, 
कुछ चीजें जो बिगड़ जाती हैं तो कभी पहले जैसी सुंदर नहीं हो पाती,
लोगों को लताड़िये मत, दुत्कारिये मत।
समझाने, डांटने के दूसरे प्रभावशाली तरीके खोजिए। 

@मन्यु आत्रेय

Thursday 18 March 2021

मज़ाक़ करो,हंसी न उड़ाओ !!

कई लोग हंसी उड़ाने और मज़ाक़ करने का अंतर समझ नहीं पाते
मज़ाक़ यानी विनोद करना हंसी उड़ाने यानी उपहास करने से अलग है
इसे जितनी जल्दी समझ जाएंगे उतनी जल्दी अपने संबंधों को 
खराब होने से बचा पाएंगे, मज़बूत कर पाएंगे। 
हास्य विनोद में किसी को बुरा नहीं लगता, बल्कि अच्छा ही लगता है
जबकि हंसी उड़ाने में सिर्फ हंसी उड़ाने वाले को ही अच्छा लगता है 
जिसके बारे में हंसी उड़ाई जा रही है उसे खराब लगता है 
यही एक पहलू एक मज़ाक़ को हंसी उड़ाना बना देता है। 
बहुत से लोग अपनी कमी,कमज़ोरी, गलती,चूक या खामी को लेकर 
अपने शरीर, अपने कपड़ों,अपनी सामाजिक या आर्थिक स्थिति को लेकर,
या अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी बातों को लेकर मज़ाक़ किया जाना पसंद नहीं करते
उन्हें इसमे अपमान लगता है या कष्ट पहुंचता है 
पर उसकी हंसी उड़ाने वाले लोगों को वह एक मज़ाक़ की विषय वस्तु लगता है
सामान्य सा विनोद कब व्यंग्य की तरह चुभता है 
और कब हंसी उड़ाना बन जाता है 
यह सामने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है
हर आदमी एक ही बात को हर समय एक समान तरीके से स्वीकार नहीं कर सकता 
सामने वाले की अपनी मनोदशा होती है,
उसकी अपनी मानसिक अवस्था होती है, अपनी परेशानियां होती हैं
जिस समय किसी को राहत के दो शब्दों की ज़रूरत हो और कोई उससे 
उन्हीं बातों को लेकर हंसी ठिठोली करने लगे तो वही भारी पड़ जाता है
हंसी मजाक कभी मीठी टॉफ़ी होता है तो कभी करेले का कड़वा रस। 
लोगों में दूरियां बढ़ने का एक प्रमुख कारण यह भी होता है 
कि वो एक दूसरे की मनोदशा और भावात्मक स्थिति की फिक्र किये बिना ही 
मज़ाक़ करते हैं या हंसी उड़ाते हैं
सहज हास्य जीवन को हल्का बनाता है लेकिन हंसी उड़ाना भीतर से घायल कर देता है 
हास्य मलहम है उपहास नश्तर।
हो सकता है आपकी स्थिति और आपसे संबंधों का विचार करके 
वो व्यक्ति आपको कोई कड़ा प्रत्युत्तर न दे और हंस के टाल दे, 
लेकिन उसके मन में आप के प्रति एक गांठ पड़ जाती है, 
जब जब आप उसकी हंसी उड़ाते हैं वो गांठ और कड़ी होती जाती है 
और आपके सम्बंध का गला घोंट देती है जिसका खामियाजा भुगतना पड़ता है,
दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा कह कर खिल्ली उड़ाने वाली द्रोपदी को 
भरी सभा मे निर्वस्त्र होने की नौबत आ गयी थी
हंसी मज़ाक़ 'करना' अच्छा है पर 'उड़ाना' बुरा है खिल्ली उड़ाना तो और भी बुरा है
लोग हंसी मज़ाक़ करने वाले को पसंद करते हैं हंसी उड़ाने वाले को नहीं! 
अगली बार जब कभी आपका मन किसी से मज़ाक़ करने को हो तो एक बार यह विचार मन मे अवश्य ले आना
कि ऐसा ही मज़ाक़ ऐसी ही परिस्थिति में कोई मेरे साथ करेगा 
तो क्या मैं उसे सहन कर पाऊंगा?
फिर भी यदि आप मज़ाक़ करना ही चाहते हैं तो सामने वाले के चेहरे के हाव भाव, उसकी देह भाषा और उसके शब्दों को 
बारीकी से देखिए समझिए और उसके अनुसार आगे बढिये
अगर आप किसी पर कीचड़ उछालेंगे तो आप भी कीचड़ उछाला जाएगा इसके लिए तैयार रहिए। 

@ मन्यु आत्रेय

Wednesday 17 March 2021

आज आपका जन्मदिन है!

आपको जन्मदिन की शुभकामनायें! 
आपकी देह का जन्मदिन चाहे जिस दिन भी पड़ता हो, 
आज की सुबह अपना नया जन्मदिन मनाईये! 
आज बिल्कुल नवजात शिशु की तरह प्यारे, मासूम और पवित्र हो जायें, 
जीवन का हर दिन बाक़ी ज़िंदगी का पहला दिन होता है। 
जब हम पैदा हुए थे तो हम दिव्य थे, अनंत संभावनायें हमारे साथ जुड़ी हुई थीं, 
हम किसी साकार दुआ की तरह थे, 
किन्हीं अंधेरों में रोशनी की पहली किरन की तरह थे 
किसी डूबते के लिये बड़ा सहारा थे, 
किसी की खुशियों का पारावार थे, एक स्वप्न साकार थे, 
हमारा जन्म अखिल ब्रम्हांड के लिये एक बड़ी बात होने वाला था, 
फिर धीरे धीरे संसार की आपा धापी में हम अपनी दिव्यता खोते गये, 
हमारी शुचिता पर दुनियावी रंग चढ़ते गये, 
हम जीवन को कुछ इस तरह से जीते चले गये कि भीतर नकारात्मकता बढ़ती चली गई, 
ईर्ष्या, द्वेष, बैर, शत्रुता, हिंसा, भावनात्मक नाटक के चंगुल में फंस गये 
महत्वाकांक्षाओं की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में धंस गये, 
हिसाब किताब के बाजार में बस गये, 
यहाॅं तक कि अपने असली स्वरूप को जानने समझने को तरस गये, 
सारी दुनिया को हमने समय दिया बस अपने आप को ही समय नहीं दे पाये 
आज इन सबको तिलांजली देनी है, इनसे मुक्त होना है आज की सुबह, 
अपने दिल को अपनी आत्मा को और अपने मन को ये वादा कीजिये कि 
आज आप अपना नया जन्मदिन मनायेंगे। 
आज आप उतने ही दैवीय और संभावनाशील बनेंगे जितने आप पैदा होते समय थे 
आज आप अतीत के सारे दर्द, सारे नकारात्मक अनुभवों, सारी वेदना, 
सारी तड़प सारी वंचनाओं से ऊपर उठने के लिये पहला क़दम बढ़ायेंगे। 
आज का दिन अपने जीवन में समृद्धि, सफलता, अच्छा स्वास्थ्य, सम्मान 
और संघर्ष में विजय की हजारों कीर्ति पताका फहराने का दिन है 
ईश्वर को धन्यवाद देने का दिन है कि उन्होंने 
आपकी जीवन यात्रा के अनुभव आपको देकर परिपक्व बनाया 
आज आप अपनी शारीरिक अनुभूतियों की अनदेखी नहीं करेंगे, 
अपनी प्रकृति के अनुसार चलेंगे, अपने व्यक्तित्व को 
किसी भी बंधन से आज़ाद कर देंगे 
आज आप किसी भी गैर जरूरी प्रतिस्पर्धा और संघर्ष के सांप को फन फैलाने नहीं देंगे 
आज अपनी गैर वाजिब इच्छाओं के हिरन को कुलांचे मारने नहीं देंगे 
आज दूसरों की हद से ज़्यादा परवाह करते हुए स्वयं के दमन का विषपान नहीं करेंगे 
आज अपने शरीर, अपने मन, अपनी बुद्धि, अपनी आत्मा 
और अपने पूरे अस्तित्व को गुणवत्ता वाला विश्राम देंगे 
और इनका द्वंद्व मिटाने का प्रयास करेंगे 
आज का दिन पूरे हृदय से खुश होंगे, 
छोटी छोटी बातों में और छोटी छोटी घटनाओं में निहित बड़े आनंद को पहचानेंगे, 
खुश होने का एक भी मौका नहीं छोड़ेंगे, 
आशान्वित होने, सकारात्मक ऊर्जा से खुद को भरने के लिये हर संभव प्रयास करेंगे 
आज के दिन अपने आराध्य से प्रार्थना करेंगे कि इस जीवन को 
हम इस प्रकार से जीयें ताकि यह हमारी ओर से ब्रम्हांडीय शक्ति के लिये एक नज़राना हो जाये।
आज के दिन यह स्वीकार करेंगे कि हमारी 
किसी से भी कोई तुलना नहीं हैं क्योंकि हम अद्वितीय हैं, 
और हमारी अपनी जीवन यात्रा अपने आप में अद्वितीय है 
आज का दिन उसी यात्रा का पहला कदम है 
और हमें आगे का हर क़दम बोध के साथ रखना है 
और अपने जीवन को सफल बनाना है।
हर रात सोने वाले लोगों में से बहुत से लोग सुबह का सूरज नहीं देख पाते, 
और हर सुबह जागने वाले बहुत से लोग रात की कालिमा नहीं देख पाते, 
हर अगले गुज़रते हुए लम्हे के साथ जिंदगी का एक अध्याय बंद हो जाता है 
और हर अगले क्षण में जीवन का एक नया सर्ग प्रारंभ हो जाता है 
इसलिये अपने हर दिन को एक नये जन्मदिन की तरह मनाना है। 

@ मन्यु आत्रेय

Tuesday 16 March 2021

उपहारों की भाषा सीख लीजिये

मुझे पूरा यकीन है कि हममें से अधिकांश लोगों के पास कोई न कोई ऐसी चीज़ ज़रूर होगी
जो बरसो पहले किसी ने उपहार में दी थी,
और आपने उसे बेहद संभालकर रखा है 
उपहारों की भाषा बेहद दिलकश, मीठी और सरल होती है 
जो एक अनपढ़ से लेकर उच्च शिक्षित तक 
और एक बच्चे से लेकर मृत्युशैया पर लेटे बूढ़े तक 
सब को आसानी से समझ में आ जाती है 
उपहार किसे पसंद नहीं होते। 
आपका उपहार सामने वाले के लिए आपकी ओर से एक अभिव्यक्ति होता है 
वह जितनी बेहतर और सुरुचिपूर्ण हो उतना असरकारी होती है
और सामने वाला आपके उपहार के प्रति कैसा रुख रखता है, 
वह उसकी आपकी अभिव्यक्ति के लिए प्रतिक्रिया होती है 
कुछ उपहार दिखाई देते हैं जैसे वस्तुएं, जो खरीदे जा सकते हैं 
कुछ उपहार दिखाई नहीं देते, जिन्हें खरीदा नहीं जा सकता
जैसे प्रेम, भरोसा, परवाह, समय और अपनापन। 
उपहार के पीछे गहरा मनोविज्ञान छुपा है, उपहार पाने वाले में पाने का सुख 
और उपहार देने वाले को देने का सुख !
उपहार आदमी को ख़ास होने का अहसास कराते हैं, 
आदमी को अच्छा लगता है कि किसी ने उसके बारे में सोचा। 
उपहार बताते हैं कि आपने किसी विशेष मौके को याद रखा, 
आपने उपहार पसंद करने और लाने में समय खर्च किया, 
कोई अवसर होने पर उपहार तो सभी देते हैं लेकिन आप किसी को बिना अवसर के उपहार देकर देखिए
बिना किसी मौके के उसे महत्वपूर्ण होने का अनुभव कराइये
सामने वाले की ज़रूरत या पसन्दगी या इच्छा के अनुसार जब आप कोई उपहार देते हैं तो वो फूला नहीं समाता,और उसके दिल में आपके लिए जगह बन जाती है 
आप सामने वाले को अपने उपहार से सुखद आश्चर्य में भी डाल सकते हैं 
उपहार हमेशा कोई महंगी चीज़ ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं, बस आपकी और सामने वाले की गरिमा के अनुकूल होना चाहिए
आप दोनों के संबंधों की गहराई के अनुपात में होना चाहिए
जहाँ आत्मीयता होती है वहाँ उपहार की कीमत नहीं देखी जाती
उपहार देने वाले की भावना और उसकी लगन देखी जाती है,
कीमत कम होने पर भी कुछ उपहार बेशक़ीमती हो जाते हैं 
आप अपनी निष्ठा, अपना बिना शर्त साथ, विश्वास और उम्र भर का प्रेम भी उपहार में दे सकते हैं 
हो सकता है कि जिसे आप बहुत मन से बहुत भावना से उपहार दें, 
परंतु वो उसकी कद्र न करे, संभाल कर न रखे,उसे इस्तेमाल न करे और कहीं कोने में पटक दे
इससे वो अपनी भावना और आपकी कीमत का संकेत कर देता है 
पर ऐसा मान कर मत चलिए कि वो सारी ज़िन्दगी आपके उपहार का ही इस्तेमाल करता रहेगा
लोग एक सीमा तक ही परवाह करते हैं 
और चीज़े बदल बदल कर इस्तेमाल करते हैं ये नैसर्गिक है 
और जिसे आपकी परवाह होगी वो आपके उपहार की भी बहुत परवाह करेगा
इसलिए अपने लोगों को खास अनुभव कराइये, और उनसे उपहारों की भाषा में बात कीजिये!

@मन्यु आत्रेय

Monday 15 March 2021

क्या आप भी इस तरीके से सोचते हैं?

हर आदमी को अपनी सोच तब तक सही लगती है 
जब तक कि उसकी सोच ग़लत नहीं साबित हो जाती। 
हमें पता नहीं चलता लेकिन हमारी सोच ग़लत हो जाती है, 
हमारे सोचने की शुरूआत ही या तो ग़लत होती है या फिर
बीच में कहीं से हम ग़लत सोच की ओर लुढ़क जाते हैं। 
हम शुरूआत से ही सिर्फ और सिर्फ नकारात्मकता में सोचते हैं,
'सब कुछ खत्म हो गया है, मैं किसी लायक नहीं,
'कोई भी मुझे प्रेम नहीं करेगा' जैसे विचार मन में लाते हैं।
कभी कभी हमारे जीवन में जो सकारात्मकता बची हुई होती है 
उसकी ओर ध्यान न देकर हम सिर्फ उन बातों पर ध्यान देते हैं 
जो नकारात्मक हैं, जो अच्छी नहीं हैं, जो अस्वीकार्य और अप्रिय हैं। 
कभी कभी हम आर या पार की सोच मन में लाते हैं, या तो ये है या फिर नहीं है। 
यानी हम सिर्फ दो ध्रुवों में बांट कर सोचते हैं, 
होगा-नहीं होगा, अच्छा-बुरा, सही-गलत, हाॅं-ना आदि। 
हम ये नहीं सोचते कि इसके बीच में भी काफी कुछ संभावना हो सकती है। 
कई बार हम किसी भी बात का सामान्यीकरण कर देते हैं। 
एक ही बात को सभी लोगों पर और हर कालखंड पर लागू करके सोचने लगते हैं।
 "हमेशा ऐसा ही होता है, हर कोई ऐसा ही करता है," ऐसे सोचते हैं। 
हम कई बार तार्किक क्षमता और सत्य की परख करने वाली 
बौद्धिकता को परे रखकर सीधे निष्कर्ष पर कूद जाते हैं। 
हम दूसरी बातों पर विचार नहीं करते और सीधे ’ऐसा ही है’ पर आ जाते हैं। 
सच को जानने का प्रयास ही नहीं करते। 
कई बार हम उन बातों के लिये भी खुद को दोषी मानने लगते हैं 
जिन पर हमारा कोई नियंत्रण ही नहीं होता, 
उन घटनाओं के लिये भी स्वयं को आरोपित करते हैं 
जिनमें हमारी कोई भूमिका ही नहीं होती। 
ऐसा कई बार होता है कि हम 'इमोशनल फूल' बन जाते हैं, 
भावनात्मक तर्क के आधार पर 
किसी एक बात को ही अपने लिये प्रामाणिक मान लेते हैं 
और अपना ही दमन करने लग जाते हैं, 
जैसे अपने बारे में यह राय बना लेना
कि चूंकि मैं सुंदर नहीं हूॅं इसलिये मैं अनाकर्षक हूॅं। 
भावनात्मक तर्क सच्चाई का प्रमाण नहीं होते हैं। 
कभी कभी हमारे तुलना करने का तरीक़ा गलत होता है 
हम दूसरों की सिर्फ अच्छी और सकारात्मक बातों की तुलना 
अपनी सिर्फ नकारात्मक और बुरी बातों से करते हैं। 
दूसरों की अच्छाई और अपनी बुराई को कई गुना करके देखने लग जाते हैं। 
हम कई बार खुद पर काफी ज़्यादा अपेक्षायें लाद लेते है 
और खुद को बहुत ही दबाव में ले आते हैं, धीरे धीरे अवसाद में चले जाते हैं। अवास्तविक अपेक्षायें लादने से बड़ा धोखा कोई खुद को क्या देगा? 
यदि आपके सोचने का तरीका भी ऐसा है तो सजग हो जाईये 
क्योंकि आप ग़लत और अस्वस्थ तरीके से सोच रहे हैं, 
इसमें अविलंब सुधार की ज़रूरत है।

@ मन्यु आत्रेय

Sunday 14 March 2021

साधनों को हमेशा तैयार रखिये

आप अपने आसपास नज़र दौड़ाइये और देखिए 
कि आपकी कौन कौन सी चीजें, सही तरीके से काम कर रही हैं और कौन सी ठीक नहीं हैं । 
आपको महत्वपूर्ण कागज़ पर दस्तखत करने हैं पर आपकी पेन में स्याही नहीं है। 
आपको एक पार्टी में जाना है पर जूते मैले पड़े हैं और कपड़े इस्त्री नहीं हैं। 
आपको तुरंत कहीं जाना है लेकिन आपकी बाइक बिगड़ी पड़ी है। 
आपको दाढ़ी बनानी है पर आपके शेविंग किट में ब्लेड ही नहीं है। 
आपको घर पर ताला लगाना है पर चाबी कहाँ है आपको नहीं मालूम। 
रात को बिजली गुल होती है पर आपको टॉर्च और मोमबत्ती नहीं मिलते। 
कुछ व्यवधान इसलिए हमारी ज़िंदगी में पैदा हो जाते हैं 
क्योंकि हम तैयार नहीं रखते खुद को। 
रोज़मर्रा के जीवन में इससे कोई बड़ा नुकसान हो न हो 
हमारी दिनचर्या में खलल तो पड़ ही जाता है, 
और हमारे मन में कहीं न कहीं कसैलापन आ जाता है। 
जो आदमी चीजों की आवश्यकता और उनका महत्व समझता है 
वो उन्हें हमेशा सलीके से रखता है, वो उन्हें उस स्थिति में रखता है 
ताकि उनका तुरंत इस्तेमाल किया जा सके
हमेशा तैयार रहने का मतलब है अपनी मानसिकता, अपने शरीर और 
अपने संसाधनों को ऐसी अवस्था में रखना ताकि
किसी भी भावी अनिश्चितता पर ठीक से प्रतिक्रिया दी जा सके। 
तैयार रहने के पीछे दूरदर्शिता होती है और थोड़ा प्रबंधन होता है। 
शरीर और मन की तैयारी अपेक्षाकृत जटिल है
लेकिन आप अपने संसाधनों को हमेशा तैयार हालत में रख सकते हैं 
जब आपके साधन संसाधन तैयार हालत में होते हैं 
तो आप बेहतर तरीके से परिस्थिति का सामना कर पाते हैं 
आपका मनोबल बढ़ा हुआ रहता है आपको भरोसा रहता है कि 
ये साधन बिल्कुल तैयार है जो मेरे काम आ जायेगा। 
और ज़्यादा कुछ करना नहीं पड़ता अपने आप को तैयार रखने
अपनी चीजों को बीच बीच में चालू करके देखिए, उन्हें इस्तेमाल करते रहिए
उनके जो भी छोटे मोटे नुख्स हैं उन्हें सुधरवा के रखिये
उन्हें बिल्कुल नियत और सही जगह पर रखिये, 
अपने साधनों के मैकेनिज्म को समझिए ये बड़े काम आता है
याद रखिये आपके पास की कोई भी चीज़ कितनी कीमती है 
यह उतना मायने नहीं रखता जितना यह कि वो वक़्त पर काम आ जाये। 
हर चीज़ एक उपकरण है एक साधन है 
आपको कब किसकी ज़रूरत पड़ जाएगी आप नहीं जानते
पर आप अपनी अनुमान शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं 
भावी आवश्यकता, परिस्थिति और सुरक्षात्मक ज़रूरत का पूर्वानुमान करें। 
बच्चे को बुखार आ रहा हो तो पैरासिटेमोल घर में रख लेना चाहिए। 
बिजली जाती हो तो प्रकाश की वैकल्पिक व्यवस्था कर के रखना चाहिए। 
बरसात आने वाली हो तो टपकने वाली छत को पहले ही बना लेना चाहिए। 
तैयार रखना प्रयास मांगता है सहज बुद्धि मांगता है इसे समझ लें। 
जो जब जहां जिस स्थिति में होना चाहिए उसे तब वहाँ उस स्थिति में रखना ही
तैयार रहने का मूल मंत्र है। 
हमेशा तैयार रहने में बड़े फायदे हैं चूकिए मत। 
@ मन्यु आत्रेय

Saturday 13 March 2021

लोग पूरा सच नहीं बताते


लोग अक्सर पूरा सच नहीं बताते, सच के सारे आयाम नहीं दिखाते,
आपको एक बीज के भीतर छुपे हुए पेड़ को पहचानना पड़ता है। 
लोग अक्सर सिर्फ उतना ही बताते हैं 
जितना जानना उनके अनुसार आपके लिए ज़रूरी हो, 
या वो आपको ज़्यादा जानने के लायक नहीं समझते हैं
या उन्हें लगता है आप पूरी बात समझ नहीं पाएंगे,
या आपका और उनका हित अहित कहीं न कहीं आड़े आ जाता है
या उनके भीतर कोई अपराध बोध होता है, जिससे वो बाहर भी आना चाहते हैं और उसके संभावित परिणाम से बचना भी चाहते हैं 
लोग इसलिए भी पूरा सच आपको नहीं बताते क्योंकि आपकी स्थिति, 
उनसे आपके संबंध और आपकी सोच उन्हें रोक देती है 
वो अनिश्चितता में होते हैं कि पता नहीं आप क्या कैसी प्रतिक्रिया देंगे
आधा सच असल में झूठ के बराबर ही होता है 
जैसे गाय दूध नहीं देती बल्कि निकालना पड़ता है 
वैसे सत्य को भी निकालना पड़ता है
पूरा सच मंथन के बाद निकलता है जैसे दही को बिलोने से मक्खन निकलता है
कौन कितना सच बोल रहा है इसको एकबारगी जाना नहीं जा सकता,
विश्वास और भरोसा भी कोई चीज़ होती है, लेकिन भरोसे में ही धोखे के बीज छुपे होते हैं 
कुछ लोग आधा सच इसलिए बताते हैं ताकि उनका काम बन जाये
कुछ लोग थोड़ा सच इसलिए बताते हैं ताकि बाकी का आप खुद पता कर लें,
कुछ लोग आधा सच इसलिए बता देते हैं क्योंकि वो आपके खिलाफ चलाये जा रहे षड्यंत्र का एक अहम भाग होता है, 
आधा सच किसी की 'अपने बचाव की युक्ति' भी होता है 
आधे झूठ आधे सच का कॉकटेल बड़ा घातक बनता है, जो चखता है, उसके होश बाद में फाख्ता होते ही हैं
सच कौन, कब, कैसे, कितना और क्यों बता रहा है यह बहुत मायने रखता है 
आधे सच के केंद्र में आपका हित है तो सामने वाला शायद आपका भला चाहता है, या खुद को आपका हितैषी बताना चाहता है
आधे सच के पीछे सामने वाले का हित छुपा हुआ हो तो यह ध्यान देने वाली बात है
आधे सच पर आधारित निर्णय लेना उतना ही सुरक्षित है 
जितना दरवाजे के एक किवाड़ को खुला छोड़कर दूसरे में ताला लगा देना,
यह दुनिया स्वार्थी, डरपोक, और लालची लोगों से भरी हुई है 
लोग सच को तोड़ मरोड़ कर अपना उल्लू सीधा करने के उस्ताद हैं 
सच को इतना जटिल तरीके से पेश किया जाता है कि आप 
जितना सामने है उसी में उलझे रहें और बाकी की तरफ न ध्यान दें
मासूमियत और भरोसमंद चेहरा छुपाए गए सच का नक़ाब हो जाते हैं,
आपका खैरख्वाह बनने का दम भरने वाला भीतर से अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित होता है
सतर्क रहो, सजग रहो, किसी के द्वारा उद्घाटित सच को पूरा मत मानो। 
सच के आयाम और विमाएं तलाशो। पुष्टि करो।
सवाल करो, अस्पष्ट हिस्सों को स्पष्ट करो। 
गोल गोल और द्विअर्थी शब्दावली के निश्चित अर्थ पूछो। 
सामने वाला कहीं न कहीं ज़रूर उलझ जाएगा, वैकल्पिक सच भी तलाशो। 
हो सकता है आधा सच आपके लिए सुविधाजनक हो, और पूरा सच आपके जीवन में खलल पैदा कर दे
परंतु उसके जान लेने से आप खुद को बेहतर तरीके से तैयार कर सकते हैं
पूर्ण सत्य ही शिव है और वही कल्याणकारी है और वही सुंदर है। 

@मन्यु आत्रेय

Friday 12 March 2021

हम लोगों को क्यों खो देते हैं?

किसी प्रिय, किसी अपने, किसी अहम व्यक्ति को 
जीते जी खोना बहुत तकलीफ़देह होता है, 
हमें जिनके बारे में यह लगता है कि इसके साथ ज़िन्दगी भर का जुड़ाव है, 
वो हाथ छुड़ा जाता है दूर हो जाता है
आखिर क्यों खो देते हैं हम लोगों को? 
सच तो ये है कि कोई भी एक पल में दूर नहीं जाता। 
हम सामने वाले की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाते
उसे उतना प्रेम, भरोसा, सहयोग, समय और सम्मान नहीं दे पाते 
जितना उसकी मानसिक और भावनात्मक ज़रूरत थी
सिर्फ ये नहीं कि हमने उसकी अपेक्षाएं पूरी नहीं की,
हमने उसे कई बार जाने अनजाने में बुरा महसूस कराया होता है
उसकी उपेक्षा की होती है, उसे लगातार ठुकराए जाने का अहसास दिया होता है
उसे वक़्त नहीं देते, देते भी हैं तो पूरे मन से उसके साथ नहीं होते, 
उसकी पसंद, उसकी राय, उसकी इच्छा, उसकी जरूरत के बारे में 
या तो हम सोचना ही भूल जाते हैं, या जान कर भी महत्व नहीं देते
हम सामने वाले को हल्के में ले लेते हैं 
हम उसके लिए ऐसा कुछ नहीं कर पाते जो उसके व्यक्तित्व को पूरा करे, तृप्त करे। 
उसकी परवाह दिखाते हुए हम बहुत ज़्यादा नियंत्रण करने लग जाते हैं 
उसे अपने काबू में रखते हैं परवाह के रेशमी कपड़े में दबोच के उसे कुचल देते हैं
कभी कभी हमारे व्यवहार, व्यक्तित्व और विचारों से हम ये दर्शा बैठते हैं 
कि हमें उसकी रत्ती भर परवाह नहीं है 
हम दुनिया की दूसरी सभी बातों को उस पर ज़्यादा महत्व देते हैं 
वो कहीं पीछे छूटा हुआ सा महसूस करते हैं
जब उन्हें यह पता चलता है कि हम उनके साथ धोखा कर रहे हैं
जब उन्हें ये समझता है कि हम तो बस उनका शोषण और इस्तेमाल कर रहे हैं 
तो उन्हें धक्का लगना स्वाभाविक है
संबंध के शुरू में आपने उन्हें शिखर दिखाया होता है और फिर धीरे धीरे 
धरातल पर आ जाते हैं, उसके बाद रसातल में चले जाते हैं 
जितना वो मानते हैं उतना कुछ भी हमारे पास उनके लिए नहीं है
जब उपेक्षा, अपमान, वंचना और धोखा सहना उनके लिए मुश्किल हो जाता है 
तो लोग हमसे दूर हो जाते हैं
हमेशा हम ही गलत होते हैं ऐसा नहीं है 
कई बार सामने वाला हमसे तब दूरी बना लेता है जब उसकी दाल नहीं गलती,
उसके मनोरथ उसके स्वार्थ पूरे नहीं होते या इसे भरोसा हो जाता है कि पूरे नहीं होंगे
कुछ लोग मूडी होते हैं आपके जीवन मे आते हैं जाते हैं फिर आते हैं फिर जाते हैं 
कई लोग आपसे दूर तो हो जाते हैं पर दूर जा नहीं पाते, 
किसी न किसी वजह से किसी न किसी वास्ते के चलते वो आपको छोड़ते नहीं हैं
पर इतना ज़रूर होता है कि आप उनकी ज़िन्दगी में अपना स्थान खो देते हैं 
आपका रिश्ता उस बंदरिया के समान हो जाता है 
जो अपने मृत बच्चे को छाती से लगाए फिरती रहती है
जो लोग आपके लिए महत्वपूर्ण हैं उनकी कीमत समझिए। 
शांति से सोचिए कि मैं अगर सामने वाले की जगह होता
और कोई मुझसे ठीक वैसा व्यवहार करे जैसा मैं इसके साथ कर रहा हूँ 
तो मैं क्या करता!! शायद आप भी छोड़ जाते!! 
तो वक़्त रहते चेत जाइये और लोगों को मत खोइए। 
किसी अपने को खो देने से दुखद कुछ नहीं, उसे खो देना ही अपने आप में एक सज़ा है!! 

@ मन्यु आत्रेय

Thursday 11 March 2021

अपने लोगों को ज़िम्मेदार बनाईये

आपकी सुविधा, सफलता और सुरक्षा काफी हद तक इस बात पर भी निर्भर करती है 
कि आपके साथ के लोग कितने ज़िम्मेदार हैं।
ज़िम्मेदारी उठाना एक अहम बात है। 
बहुत से लोग सुविधायें, सफलतायें पूरी पाना चाहते हैं 
पूरी सुरक्षा में रहना चाहते हैं लेकिन उसके प्रति अपना दायित्व नहीं निभाते। 
जिम्मेदार बनने का सीधा सा अर्थ है 
जब जो करना चाहिये उन्हें वो करना होगा 
और जब जो नहीं करना चाहिये वो उन्हें नहीं करना होगा। 
हर आदमी को अपनी भूमिका को समझते हुए अपना योगदान देना चाहिये, 
समय के तक़ाजे़ को समझना ज़रूरी है। 
कुछ लोग आदतन लापरवाह होते हैं, या छद्म रूप से गैर ज़िम्मेदार होते हैं 
उन्हें समय रहते पहचान लेना चाहिये 
और किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिये उन पर एकदम से निर्भर नहीं होना चाहिये, 
अन्यथा बड़ा धोखा हो सकता है। 
नाव को दिशा देने और खेने वाली पतवार कितनी ही मज़बूत हो, 
बड़ी से बड़ी नाव का एक छेद उसे डुबो देता है।

लोग तब तक जिम्मेदार नहीं होते जब तक कि कोई काम खास उन्हें ही सौंपा गया न हो। 
लोगों को पहले छोटी छोटी ज़िम्मेदारी सौंपनी चाहिये, 
सौंपने से पहले उन्हें अच्छे से समझा देना चाहिये कि उन्हें क्या, कब और कैसे करना है।
उन्हें उनकी भूमिका का महत्व अच्छे से समझा देना चाहिये 
ताकि उनके चित्त में वह बात बनी रहे कि इस काम को ऐसे करना है। 
बीच बीच में उनसे पूछना चाहिये कि काम की प्रगति कैसी है, 
या फिर उन पर गुप्त रूप से निगाह रखनी चाहिये। 
यदि उन्हें कोई दिक्क़त हो रही हो तो उसके समाधान में उनकी मदद करनी चाहिये, 
परंतु मुख्य काम उन्हीं को करने देना चाहिये, 
इससे उनकी क्षमता बढ़ेगी और उनमें ज़िम्मेदारी की भावना पैदा होगी। 
लोगों को ज़िम्मेदार बनाने के लिये दंड और पुरस्कार की नीति अपनाई जा सकती है। 
जब भी कोई ज़िम्मेदारी से काम करे तो उसकी सराहना कीजिये, 
उसके काम में सुधार हेतु मदद और सुझाव कीजिये, 
वहीं जब कोई लापरवाही कर दे तो उसे ग़लती सुधारने का मौक़ा दीजिये 
और उसे समझाईये कि लापरवाही से हानि हो सकती है। 
किसी दूसरे को उसकी हंसी न उड़ाने दीजिये।
बार बार ग़ैर ज़िम्मेदारी प्रदर्शित करने वाले को महत्वपूर्ण कार्य से हटा दीजिये 
और उसको दूसरे कामों में ज़िम्मेदारी दीजिये जिसमें उसकी रूचि हो जिसमें वो अच्छा हो।
जब सब लोग अपनी अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं
 तो टीम की भावना मज़बूत होती है, जिसका फ़ायदा सभी को होता है। 
जब आपके लोग ज़िम्मेदार होते हैं तो आपके लिये सुविधा बढ़ती है, 
आपके घर पर अव्यवस्था नहीं होती, रात को दरवाज़ा खुला नहीं छूट जाता, 
गैस पर चढ़ा हुआ दूध उफनकर गिरता नहीं, 
रसोई गैस खत्म होने से पहले ही गैस बुकिंग हो जाती है। 
ऑफिस में आपके काम समय पर पूरे होते हैं, लोगों के काम में गंभीरता बढ़ती है, 
चूकें कम होती हैं, माहौल अच्छा होता है और काम में गति आती है। 
लोगों को ज़िम्मेदार बनाना उनकी क्षमता बढ़ाना है, 
आपके लोगों की क्षमता बढ़ने का अर्थ है आपकी खुद की क्षमता बढ़ना।  

@मन्यु आत्रेय

Wednesday 10 March 2021

शिवजी से सीखें जीवन के 21 नियम


भगवान शिव हमें ज़िंदगी के कई नियम सिखाते हैं। ऐसी कई बातें हैं जो हम सिर्फ़ और सिर्फ़ भगवान शिव से सीख सकते हैं। भगवान शिव स्वयंभू हैं यानी उन्हें किसी ने नहीं बनाया। आदमी को स्वयं अपना निर्माण करना चाहिये। भगवान शिव में अपरिमित शक्ति है परंतु वे उसका कभी अनावश्यक प्रदर्शन नहीं करते हैं। हमें अपनी क्षमताओं, अपने गुणों और अपनी शक्तियों का कभी अनावश्यक प्रदर्शन नहीं करना चाहिये।  

भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाने के कारण आशुतोष कहलाते हैं, आदमी को थोड़े में खुश हो जाना चाहिये। शिव निरंतर आत्म लीन रहते हैं। व्यक्ति को शिखर पर पहुंचकर अपने आप को नहीं भूलना चाहिये। शिव का क्रोध कल्याणकारी है और अपने क्रोध से उत्पन्न परिणाम को बदलने की भी उनकी क्षमता है। आदमी का क्रोध रचनात्मक और सार्थक होना चाहिये, किसी का भला करने वाला होना चाहिये। शिव अभयदान देने वाले हैं। शरणागत वत्सल हैं। अपने प्रिय भक्तों की रक्षा के लिये वे यमराज तक से लड़ सकते हैं। इंसान को किसी के लिये पूरी सच्चाई और अपनी पूरी क्षमता से प्रयास करने चाहिये। 

शिव निष्ठावान हैं। शिव का चरित्र अत्यंत उज्ज्वल है। साक्षात कामदेव और रति भी उनके मन को विचलित नहीं कर पाये। आदमी को अपने चरित्र पर दृढ़ रहना चाहिये, सांसारिक आकर्षणों में घिर कर अपनी साधना, अपने संकल्प को भंग नहीं करना चाहिये, फ़िसलना नहीं चाहिये। 

शिव ने अत्यंत वेगवती गंगा को अपनी जटाओं में और चंद्रमा को अपने शीश पर स्थान दिया है, इंसान को सभी को यथोचित सम्मान और स्थान देना चाहिये। शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया है, भूत प्रेत उनके अनुचर हैं, विषधर सर्प को अपने गले में धारण रखते हैं, समाज के वंचित, शोषित और उपेक्षित लोगों को अपने साथ लीजिये। आलोचना करने वालों को भी अपने गले लगाईये क्योंकि वे आपको शक्ति पाने के लिये तैयार करते हैं। 

शिव श्मशान में रहते हैं और चिता की राख को अपनी देह में लपेटे रहते हैं। इंसान को यह मानना चाहिये कि सारी दुनिया मृत्यु शैया है, हम सब क्षण क्षण में मरते जा रहे हैं, इसलिये हर एक क्षण को आनंद में जीना चाहिये, मृत्यु से डरना नहीं चाहिये तभी अपने अमर स्वरूप को जाना जा सकता है।

शिव मितभाषी हैं, उनकी वाणी गंभीर और प्रभावोत्पादक है। आदमी को कम बोलना चाहिये परंतु सार्थक और प्रभावशाली बोलना चाहिये। समुद्र मंथन में निकले हलाहल को जब कोई और ग्रहण नहीं कर पाया तो भगवान शिव ने उसे स्वयं अपने कंठ में स्थान दिया और नीलकंठ महादेव बन गये। जीवन में कई बार आपको परिस्थितियों का विष झेलना पड़ेगा। उसे उगलना नहीं है उसे निगलना नहीं है, तभी वही आपकी महानता का प्रमाण और गंभीरता का स्रोत बनेगा। शिव वैद्यनाथ हैं वे हर एक जड़ी बूटी की क्षमताओं से परिचित हैं, इंसान को पता होना चाहिये कि उसके परितः जो कुछ भी है वह किसी न किसी काम का है।

शिव तांडव नृत्य जानते हैं और डमरू भी बजाते हैं, आदमी को कलाओं में भी प्रवीण होना चाहिए। 

सारे संसार के स्वामी भगवान शिव परिवार को बहुत महत्व देते हैं। आदमी को अपने परिवार को पर्याप्त समय और ध्यान देना चाहिये। सर्वश्रेष्ठ प्रेमी शिव अपनी शक्ति को अर्धांंग में धारण करते हैं। व्यक्ति को अपने जीवन साथी के साथ  अनन्यता स्थापित करनी चाहिये। शिव परिवार में विरोधाभासों का बेहतरीन मेल है। व्याघ्र और बैल, मोर और चूहा, सर्प आदि परस्पर शत्रु होने के बावजूद शांतिपूर्ण सह अस्तित्व रखते हैं। अपने परिवार और कार्यस्थल में परस्पर विरोधी विचारधाराओं के बीच तालमेल और सह अस्तित्व बनाये रखने से ही शांति रहती है।शिव काली का क्रोध शांत करने उनके चरणों तले भी आ जाते हैं। शांति की स्थापना के लिए स्वयं को प्रस्तुत कर देना चाहिए। 

भगवान शिव बहुत सरल हैं इसीलिये तो उन्हें भोले बाबा कहा जाता है। सरलता में ईश्वर निवास करते हैं। इंसान को ज़्यादा जटिल नहीं होना चाहिये, सरल ज़िंदगी जीना सबसे अच्छा है। इसलिये शिवं भूत्वा शिवं यजेत् को हमेशा याद रखें यानी शिव जैसे बनकर ही शिव की उपासना कीजिये।  


@ मन्यु आत्रेय


Tuesday 9 March 2021

सार्थकता अधिकतम उपयोग में है

जो कुछ भी आपके पास है, क्या आप उसका पूरा पूरा उपयोग करते हैं? 
अक्सर हमारी किताबों में से कई किताबें पूरी पढ़ी ही नहीं जाती
कई पेनों में स्याही बाकी छोड़ दी जाती हैं
कई कपड़े और जूते बहुत थोड़े बार पहने जा पाते हैं
साबुन की बट्टी, टूथपेस्ट जैसी चीजें पूरी इस्तेमाल किये बिना फेंक दी जाती है
अक्सर कम कीमत की चीजें हम बिना पूरा इस्तेमाल किये ही छोड़ देते हैं
कीमती चीजें जो नष्ट होती हैं वे भी हमारी इस आदत के कारण बर्बाद हो जाती हैं
कपड़े छोटे हो जाते हैं, खड़ी खड़ी गाड़ी बेकार हो जाती है
बिना पूरे उपयोग के कई चीजें फ़िज़ूल हो जाती हैं
थाली में छोड़ दिये गए पकवान बर्बाद हो जाते हैं
जब आपके पास किसी चीज़ की मात्रा ज्यादा होती है 
तो उसका पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं
चीजें ज़्यादा हों तो हमारा ध्यान सब की ओर नहीं जा पाता 
ज़्यादा चीजें अव्यवस्था भी पैदा करती हैं और खोती भी ज़्यादा हैं
कम मात्रा मितव्ययता से इस्तेमाल का गुण सिखाती हैं,
एक आदमी दो बाल्टी पानी से मंजन करना, नहाना कपड़े धोना सब निपटा लेता है
और दूसरा आदमी इतने में ही आधी टँकी खर्च कर देता है
साधनों और वस्तुओं के प्रयोग का सबसे अच्छा तरीका सीखिए
इससे आपकी उत्पादकता और प्रभाविता बढ़ेगी
एक योद्धा एक ब्लेड को घातक हथियार बना लेता है
वहीं एक नौसिखिया AK 47  की सारी गोलियां एक ही बर्स्ट में बर्बाद कर सकता है
जब भी हमारे पास चीजों के नए और उन्नत संस्करण आ जाते हैं तो 
हमारी पुरानी चीजें हमारे उपयोग में आना बंद हो जाती है 
जो चीजें इस्तेमाल आना बंद हो जाती हैं वो कबाड़ बनती जाती हैं
आप जितना कबाड़ जितना गैर ज़रूरी सामान रखेंगे 
आपके जीवन में अव्यवस्था बढ़ती रहेगी
याद रखिये हर पुरानी चीज़ एंटीक नहीं बनती
उपयोग करने की एक मानसिकता होती है 
एक आदमी जैसा वस्तुओं के साथ करता है वैसा ही कमोबेश रिश्तों के साथ करने लगता है
आपके पास जो है उसका अधिकतम इस्तेमाल कीजिये 
वस्तुएं साधन जुटाने में जो कीमत चुकाई  गई थी 
उसके साथ न्याय तभी होगा जब उस चीज़ का अधिकतम इस्तेमाल किया जाए। 
साधनों के प्रति सम्मान प्रकट करने का एक ही तरीका है 
उनका सही समय पर बेहतर से बेहतर और अधिकतम इस्तेमाल करना। 
जो साधन जो वस्तुएं आपके काम की नही रहीं
जिन्हें आप दूसरों को दे सकते हैं 
उन्हें दूसरों को दे दीजिये इससे आपका बोझा कम होगा
हो सकता है कि जो आपके लिए अनुपयोगी हो
वह किसी और के लिए एक बड़ा सपना हो!! 
अपने साधनों, संसाधनों की तरह अपने शरीर, अपने दिमाग,
अपनी प्रतिभा और अपने व्यक्तित्व का पूरा इस्तेमाल कीजिये
जो कुछ भी आपके पास है उसे सार्थक बनाइये। 

@ मन्यु आत्रेय

Monday 8 March 2021

साधनों की कमी का रोना ना रोओ!

कुछ लोग हमेशा साधनों का रोना रोते रहते हैं।
किसी काम को पूरा करने के लिए कुछ साधन निश्चित तौर पर ज़रूरी 
और अनिवार्य होते हैं और उनके बिना काम नहीं होता। 
परंतु अक्सर हमारे पास उस की कमी को भरने के लिए विकल्प होते हैं, 
हमारी नज़र में वो नहीं आते क्योंकि हमारी सोच वहां तक जा नहीं पाती। 
जब हमारा दिमाग 'नहीं है' पर केंद्रित होता है 
तो हम अभाव उन्मुखी हो जाते हैं परन्तु जब हम 
उस अभाव को दूर करने के वैकल्पिक रास्ते तलाश करते हैं 
तो हम समाधान की ओर आगे बढ़ते हैं। 
जिसमे प्रतिभा होती है जिसमें जुनून होता है, 
वो कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकाल लेता है। 
जो अनिवार्य होता है आदमी उसे किसी न किसी तरीके से कर ही लेता है। 
आपने जेम्स बांड की फिल्मों में देखा होगा कि 
किस प्रकार वो दुश्मन के ठिकाने पर मौजूद 
साधारण सी रोज़मर्रा की चीजों से घातक बम  बना लेता है। 
हमारे पास जो कुछ भी उपलब्ध है उसके सबसे बेहतर उपयोग से 
हम अपनी बहुत सी कमियों को जीत सकते हैं।
जो नहीं है उन्हें किसी से उधार मांगकर जुटाया जा सकता है। 
पेंसिल के पैसे नहीं होने से कोयले से लिख कर भी अभ्यास किया गया है। 
घर पर लाइट नहीं होने पर स्ट्रीट लैंप के नीचे लोगों ने अपनी पढ़ाई पूरी की है। 
आवागमन का साधन नहीं होने से मीलों का सफर पैदल तय किया है। 
एक महान फुटबॉलर ने पैसों के अभाव में कपड़ों की चिन्दियों की फुटबॉल से खेलना शुरू कर दिया था।
जिनमें कर दिखाने का जुनून हो वो साधनों का रोना नहीं रोते। 
लोग साधारण सी गैंती फावड़े से पहाड़ काट कर रास्ता बना लेते हैं
अपने आस पास के साधनहीन लोगों को देखिए। 
वो लोग किस तरह से मैनेज कर रहे हैं
साधनों पर बहुत ज़्यादा निर्भरता अच्छी नहीं,
लाठी पास होना अच्छा है पर शरीर की ताकत को विकसित करना ज़्यादा बेहतर है।
जब आप अभावों को दूर करने के नए तरीके और नई व्यवस्थाएं खोजते हैं 
तो असल में आप आविष्कार कर रहे होते हैं
दुनिया में कुछ भी पहले से इस स्वरूप में नहीं था जैसा आज है
पहले हवा थी पर पंखे,कूलर, एसी नहीं थे
पहले सफर था पर साइकिल, गाड़ी,ट्रेन, हवाई जहाज़ नहीं थे
ये सब कुछ अभावों को दूर करने के उपाय खोजने के कारण प्रकट हुआ है। 
आपके जीवन में जो साधन नहीं हैं उनकी कमी को खुद पर हावी मत होने दीजिए
अपना मनोबल और उत्साह ठंडा मत पड़ने दीजिए
याद रखिये एक योद्धा एक ब्लेड को भी घातक हथियार बना लेता है 
और एक नौसिखिया ए के 47 को भी लाठी जैसे इस्तेमाल करता है। 
जो नहीं है उसके रास्ते निकालो, जो है उसका सबसे बेहतर इस्तेमाल करो
तो दुनिया में कुछ ऐसा नहीं जो आपको रोक सके।

@मन्यु आत्रेय

Sunday 7 March 2021

स्त्री शक्ति: वे हैं तो हम हैं !!

विश्व महिला दिवस पर आज अपने जीवन मे 
अब तक शामिल रही महिलाओं को याद करें, उन्हें मिलें
या फ़ोन पर बात करें और जो कुछ भी उन्होंने हमारे लिए किया, 
उसके लिए उन्हें हृदय से आभार व्यक्त करें।
उन्हें बताएं कि हमारे जीवन की कथा में उनका कितना महत्वपूर्ण योगदान है, 
हमारे निर्माण में, संभालने में, हमें संवारने में उनकी कितनी भूमिका है! 
आज उन अवसरों को याद करें जब उन्होंने हमारे लिए कुछ अच्छा किया था
जब हम अपना ध्यान नही रख रहे थे तो वे हमारे लिए फिक्रमंद थीं 
जिन्होंने स्वयं असुविधा और अभाव को झेल लिया 
हमारे लिए सारी व्यवस्थाएं करती रहीं ताकि हमें असुविधा न हो
हमारे लाख खराब व्यवहार के बावजूद उन्होंने कभी 
हमारे लिए अपना स्नेह और सहायता कम नहीं की, 
जब हम अकेले थे हताश थे कमज़ोर पड़ रहे थे
तो उन्होंने हमें उम्मीद बंधाई, हममें नई ताक़त भरी, 
हमारे साथ खड़ी रहीं, और हर विपत्ति का सामना करने में साथ निभाया
जब हम भी खुद को नहीं समझ पा रहे थे, तो उन्होंने हमें समझने की कोशिश की,
हम जब उदास थे तो उन्होंने हमें हंसाया, 
हम जब स्वार्थी हो गए तो उन्होंने हम पर और ज़्यादा कोष लुटाया
हम क्रोधित हुए, डांटा फटकारा, जली कटी बातें कहीं, 
उन्होंने सहा, सहती रहीं, और मुस्कुरा कर माफ करती रहीं 
जब हम दुनिया के संघर्षों से टूट कर थक कर उनके नरम आँचल की छांव में गए
उन्होंने प्रेम और अपनत्व से स्नान कराके हमें तरोताज़ा किया
जिन्होंने कभी अल्पता का रोना नहीं रोया,जो मिला उसमें खुश रहीं,
जिन्होंने हमेशा अधिक से अधिक अर्जित कर पाने के लिए हमें प्रेरणा दी
उन सबके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करें जिन्होंने
हमें सेवा दी,हमारे सम्मान का ध्यान रखा, जिन्होंने बड़े से बड़ा राज अपने सीने में दबाए रखा 
और हमारी इज़्ज़त को उछलने नहीं दिया
जिन्होंने हमारे लिए अपने आत्मसम्मान को दूसरे स्थान पर रखा,
अपनी सुरक्षा को खतरे में डाला, हमारे लिए सच्चे दिल से कोशिशें की,
उन सब महिलाओं को हृदय से माफी मांगें  जिन्हें हमने दोयम समझा
जिन्हें  अपने निर्णय नहीं लेने दिए, जिन पर पाबंदियां लगाई, जिनके हौसलों को तोड़ा,
जिनके हम भरोसे पर खरे नहीं उतरे, वक़्त पर जिनका साथ न दे पाए,
जिनके अनेक कर्ज़ से लदे होकर भी हम कृतघ्न सिद्ध हो गए 
हमारे लिए कण से लेकर ब्रम्हांड तक की सेवा, सहायता, समझ, सद्भाव रखने वाली तमाम 
स्त्री शक्ति को आज हृदय से धन्यवाद करें
आज विश्व महिला दिवस पर एक सच्चे दिल की दुआ उनके लिए भी मांगें क्योंकि 
वे हैं तो हम हैं !!

@मन्यु आत्रेय

Saturday 6 March 2021

फंदे, शिकंजे और जाल पहचानिये

आपके इर्द गिर्द बहुत से फंदे, शिकंजे और जाल छुपे हुए होते हैं
करीबी लोग भावनात्मक जाल में फांस के मनचाहा करवा लेते हैं
कहीं उलझने पर नियम कानूनों का शिकंजा तैयार रहता है
आपके शत्रुओं द्वारा आपको फंसाने के फंदा बिछाया जाता है
आपके प्रतिद्वंद्वी आपके रास्ते में गड्ढे खोदते हैं
अगर आप सतर्क सावधान हुए तो आप उन्हें पहचान सकते हैं, बच सकते हैं
और होशियार हुए तो फँसकर भी निकल सकते हैं 
या सामने वाले को उसी के फंदे में फंसा सकते हैं 
फंदे जाल और शिकंजे छुपे हुए होते हैं सीधे तौर पर दिखाई नहीं देते
आदमी सब ठीक तो है सोचकर लापरवाही करता है और फंस जाता है
आप सोचिए कि कौन कौन आपको कैसे कैसे और कहां कहां फंसा सकता है
जिसकी संभावना सबसे अधिक हो उसके लिए सबसे पहले सतर्क हो जाओ 
हालांकि कई बार फंदा होता किसी और के लिए है पर फंस कोई और जाता है
फंदे का अर्थ है किसी ने पहले से घात लगा कर रखी है 
शिकार की गतिविधियों को अच्छे से जान समझ कर आदतों और सावधानी का अध्ययन कर उसकी कमज़ोरियों के अनुसार फंदा लगाया जाता है 
उकसावा, असावधानी और कमज़ोरी आदमी को फंदे में फंसाती हैं। 
हमारी बुद्धि पर ताला पड़ जाता है
और हम वो कर बैठते हैं जो नहीं करना था
कुछ लोग आपस में मिल जाते हैं 
और आपको अपने फंदे या जाल की ओर ले जाते हैं
ये लोग कभी आपको चुनौती देते हैं कभी डरा देते हैं कभी प्रेरित करते है, कभी साथ देने का नाटक करते हैं
इसे हांका लगाना कहते हैं
अक्सर फंदे में कुछ चारा डाला गया होता है
हम इतना मोहित हो जाते हैं कि चूक कर देते हैं प्रतिरोध नहीं कर पाते, 
बहुत ज़्यादा विश्वासु और आशावादी हो जाते हैं
लोग आपसे कुछ पाने के लिए, आपको दबाने या रास्ते से हटाने के लिए आप पर फंदे डालते हैं
आजकल जो एमएमएस बनते हैं वो फंदा ही तो है
या फर्जी निवेश के नाम पर पैसा लूट लिया जाना,
या धोखे से कहीं ले जाकर अपराध का शिकार बना देना,  
किसी रिश्ते में फांस कर ब्लैकमेल करना 
ये सब फन्दों का ही उदाहरण है।
फंदे छोटे होते हुए भी फांस लेते हैं, 
तमाशा बना सकते हैं 
फंदा किसी बड़े संकट का प्रवेश द्वार हो सकता है इसलिए बच के रहिए। 
फन्दों से बचने का एक ही तरीका है 
अपनी स्थिति को हमेशा भांपते रहना,
चौकन्ने होकर लोगों को आंकते रहना,
जितनी हो सके सावधानी रखना, 
कोई भी विवरण पता करने में लापरवाही मत करना,
अपने आप को खुली किताब मत बनाना कि कोई भी आपको समझ जाए। 
अपने तरीके, रास्ते, अपनी बचाव युक्तियां लगातार बदलते रहनी चाहिए। 

@मन्यु आत्रेय

Friday 5 March 2021

कौशल में दक्षता बढ़ाइए!!

आपमें बहुत से कौशल हैं। बहुत सी क्षमताएँ हैं। आप दौड़ने का कौशल रखते हैं पर क्या आप एक फर्राटा धावक भी हैं
आप बोलना जानते हैं लेकिन क्या आप  एक अच्छे वक्ता हैं
आप कल्पना करना जानते हैं पर क्या उसे चित्रों, कविताओं नए आविष्कारों में ढाल पाते हैं
आप क्रिकेट खेलते हैं तो गली मोहल्ले तक सीमित हैं या रणजी वगैरह खेला है
गाना गाते हैं तो घरेलू बैठकों या बाथरूम सिंगर रहने तक सीमित तो नहीं हैं 
आप अक्सर कई चीजों को सिर्फ सीखने भर तक सीखते हैं 
लेकिन उनमें निपुणता बढ़ाने का काम नहीं करते
आप उन्हीं में निपुणता अर्जित करते हैं 
जिनकी आपको किसी समय ज़रूरत होती है, जिसमें मज़ा आता है,
या जिसमे भविष्य की संभावना देखते हैं
आप जब अपने किसी कौशल पर काम करते हैं, अभ्यास करते हैं, 
त्रुटियों से सीखकर खुद में सुधार करते हैं 
तो आप अपने कौशल में दक्षता हासिल कर लेते हैं। 
कौशल को जानना अलग है और उसमें निपुण और दक्ष हो जाना अलग है।
हम में से अधिकांश लोग बहुत सारे कौशल जानते हैं 
परंतु सबकी अपनी अपनी क्षमताएँ होती हैं 
और उन्हीं के दायरे में हम अपने कौशल विकसित कर पाते हैं।
अपने आप से पूछिए कि मैं कौन कौन से कौशल जानता हूँ 
उनमें मेरी निपुणता और दक्षता कितनी है
यदि मैं कंप्यूटर जानता हूँ तो वह सामान्य ज्ञान है या कोडिंग प्रोग्रामिंग तक जानता हूँ
मैं बॉडी बिल्डिंग जानता हूँ तो वह फिटनेस तक सीमित है या शरीर सौष्ठव तक आगे हूँ।
ब्यूटीशियन का काम घर तक है या व्यावसायिक भी कर सकती हैं? कुकिंग क्या रोजगार के स्तर तक नहीं जा सकती?
किसी भी कौशल में औसत रह जाने से कोई लाभ नहीं 
औसत की कोई पहचान नहीं बनती न कोई फायदा होता है
निपुणता और दक्षता आपकी ताक़त बन सकते हैं, 
साधारण से लोगों ने अपने कौशल में दक्षता हासिल करके 
असाधारण सफलता अर्जित की है
जो कुछ भी आप जानते हैं उसे माँजिये। 
उसे जल्दी, बेहतर, कम मेहनत में, आसानी से 
और कम खर्च में कैसे किया जा सकता है यह सीखिए
जब आप ये सीख जाएंगे तो आपकी दक्षता बढ़ जाएगी। 
जब लोग हमारी श्रेष्ठता के लिए हमारी आवश्यकता महसूस करते है
तो संसार मे हम महत्वपूर्ण हो जाते हैं, बेहतर प्रतिफल हासिल कर सकते हैं
जीवन के आड़े समय में आदमी का कौशल ही कई बार
सम्मानजनक रोजगार बन जाता है
अपने अस्तित्व को अपने काम की दक्षता से पहचान दीजिए, 
आज ही तय कीजिये कि मुझे अपने किन कौशलों को दक्षता में तब्दील करना है
याद रखिये
दक्षता से मिली हुई प्रतिष्ठा लंबी चलती है
आप लंबी रेस के घोड़े बनिये, फेरी वाले टट्टू तो लाखों हैं। 

@ मन्यु आत्रेय

Thursday 4 March 2021

न समस्याएं खत्म होंगी न समाधान!!

समाधान होने से पहले हर बात एक समस्या ही होती है। 
समस्या असल में नज़रिए का खेल है। 
कोई भी स्थिति या बात जिसे आप अपनी क्षमताओं को परखने का अवसर मानते हैं वह चुनौती बन जाती है, 
अगर उसी को आप रुकावट, बाधा या परेशानी मानते हैं 
वो आपके लिए समस्या बन जाती है। 
समस्याएं कभी खत्म नहीं होती। 
एक समस्या सुलझाओ तो दूसरी कई समस्याएं सामने खड़ी रहती हैं। 
दुनिया का ऐसा कौन सा इंसान होगा जिसे कोई समस्या नहीं होगी
लेकिन बड़े लोग बड़ी समस्या का सामना भी हौसले के साथ करते हैं  
संकटों में भी अवसर की तलाश कर लेते हैं 
वही लोग बड़े बन पाते हैं 
और कमज़ोर लोग छोटी छोटी सी समस्याओं के सामने हौसला हार जाते हैं 
समस्याओं को संकटों के रूप में देखते हैं
और बिना संघर्ष किये ही घुटने टेक देते हैं 
डरने वाले कॉकरोच से डर जाते हैं न डरने वाले बब्बर शेर से भी लड़ जाते हैं 
मज़बूत बनने का एक ही तरीका है, 
छोटी छोटी समस्याओं का समाधान अपने दम पर करना 
और क्रमशः बड़ी समस्याओं के समाधान की क्षमता बढ़ाना। 
तालाब पार करोगे तब तो समंदर पार करोगे। 
कूदना पड़ेगा हिम्मत से, अपने शरीर और मन की ताकत को आजमाना पड़ेगा
दुनिया मे ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान नहीं
बस हमें खुद को उस समाधान के लिए तैयार करना पड़ता है। 
लोग बड़े बड़े संकटों से उबर जाते हैं, 
समस्या से लड़ने के क्रम में सबसे पहले वहां प्रहार करो जहां से समस्या पैदा हो रही है
समस्या का स्रोत बंद कर देना आधी जंग जीत लेना है
कुछ समस्याएं पहले छोटी होती हैं पर बाद में विकराल हो जाती हैं 
कुछ समस्याएं पहले बहुत बड़ी लगती हैं पर जब उनका सामना करते हैं 
तो वे बहुत छोटी और आसानी से हल हो जाती हैं 
समस्या को छोटे छोटे हिस्सों में तोड़कर देखोगे तो 
बड़ी से बड़ी समस्या को धीरे धीरे हल किया जा सकता है पार किया जा सकता है
समस्याएं भविष्य के संकेत भी करती हैं 
इसलिए उनकी उपेक्षा या लापरवाही करना उचित नहीं
समस्याएं कभी खत्म नहीं होंगी और न कभी समाधान खत्म होंगे
उस हिरनी की तरह मत जिओ जिसे तेंदुआ दबोच लेता है 
बल्कि उस महावत की तरह जिओ जो मदमस्त हाथी को भी 
अपने शूल से नियंत्रण में कर लेता है।

@ मन्यु आत्रेय

Wednesday 3 March 2021

रिश्ते मज़बूत करने वास्ता बढ़ाइए!!

नाता और रिश्ता दो अलग अलग बातें हैं
रिश्ता वो स्थिति है जिसमें दो लोग किसी भी रूप में जुड़ा हुआ महसूस करते हैं
भले ही उनमें कोई औपचारिक नाता हो या नहीं हो, 
नाते औपचारिक होते हैं नातों को सामाजिक मान्यता होती है
पति पत्नी, भाई बहन चाचा मामा आदि  समाज के औपचारिक नाते होते हैं 
अगर नाता बाहरी ढांचा है तो  रिश्ता उसका अंदरूनी भाग है। 
हर रिश्ते को सामाजिक मान्यता हो ये ज़रूरी नहीं 
रिश्ता परस्पर अच्छा हो तो नाते टिकते हैं वरना नाममात्र के रह जाते हैं। 
रिश्ता अच्छा न हो तो भाई भाई का दुश्मन हो जाता है, 
नई नई शादी में तलाक़ हो जाता है। 
बेटा बहू बूढ़े माँ बाप को छोड़ कर दूर जा बसते हैं 
या लोग उम्र भर ऐसे नातों को ढोते रहते हैं जिनमे रिश्ता कब का मर चुका होता है
रिश्ते को मजबूती मिलती है परस्पर जुड़ाव से, अपनापन होने से, एक दूसरे के साथ खड़े होने से, 
परवाह से, प्रेम से, विश्वास से, सम्मान से, एक दूसरे पर निर्भर होने से, एक दूसरे को समय देने से। 
जब ये सब एक रिश्ते में होता है तो वहां वास्ता प्रबल होता है
वास्ता प्रबल होता है तो रिश्ते मज़बूत रहते है रिश्ते अच्छे हों तो नातों का कोई अर्थ रहता है
दो लोगों के आपस में जो संबंध होते हैं उससे तय होता है कि इस रिश्ते में कितनी जान है
किसी के लिए दिल मे जो तड़प होती है वही उससे हमारा वास्ता है
वास्ता नहीं हो तो करीबी नाते रिश्ते भी ताश के महल की तरह ढह जाते हैं। 
अपने रिश्ते को प्रबल करने के लिए आपसी वास्ता बढ़ाइए
जिस रिश्ते में आपसी वास्ता बहुत प्रबल होता है
तो लोग एक दूसरे के लिए समाज से भी टकरा जाते हैं, मौत से भी लड़ जाते हैं 
अपने संबंध में धीरे धीरे घट रहे वास्ते को पहचानिये, उसे बचाये रखने और बढ़ाने का प्रयत्न कीजिये
आपके रिश्ते कभी खराब नहीं होंगे! 

@मन्यु आत्रेय

Tuesday 2 March 2021

प्रेम को कभी खोना नहीं !!

इंसान को अपने जीवन में जिस चीज़ की ज़रूरत उम्र भर पड़ती है वो है प्रेम। 
सबकी अपनी अलग अलग परिभाषा, सबके अपने अलग अलग मापदंड। 
चाहे जो हो, अपने प्रेम को पहचान लिया तो फिर उसे कभी खोना नहीं
प्रेम में आप कितने वर्षों से हैं ये मायने नहीं रखता
मायने ये रखता है कि प्रेम कितना गहरा हुआ है
कोई भी इंसान एकदम पूर्ण नहीं होता उसकी अपनी गलतियाँ होंगी, कमियाँ होंगी, चूक होगी
उसके अधूरेपन को भी पूरेपन से प्यार करना। 
जिससे आपका प्रेम है उससे संवाद कभी खत्म नहीं करना। 
अच्छे बुरे समय मे, हानि-लाभ, मान-अपमान, जीत-हार में कभी एक दूसरे का साथ मत छोड़ना।
साथ खड़े रहना हरदम, चाहे एक दूसरे से मीलों दूर हो।
आप जिससे प्रेम में हों, उसकी कदर करना
उसके लिए हमेशा वक़्त निकालना, 
जो वो है जहां है, जैसे है आगे जो भी हो उसे स्वीकार करना
उसे समझने की कोशिश करना,
उसे अपना स्निग्ध स्पर्श देना, उसके साथ रहना। 
जब कभी आपसी रिश्ते में खटास आने लगे 
तो यह हमेशा याद करना कि इसकी शुरुआत कितनी मोहक थी
प्रेम में हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहना, नई जगहों को जाना, नई चीजें करना
अपने उस वास्ते की गोंद को मजबूत करना जो रिश्ते को जोड़े रखती है
प्रेम आसान नहीं है सस्ता नहीं है बेशकीमती है, टिकाऊ है
कुछ समय सिर्फ और सिर्फ उसके लिए निकालना, और दुनिया की किसी भी ताक़त को दोनों के बीच आने की जगह मत देना। 
सामने वाले को दबाने की इस्तेमाल करने की शोषण करने की सोचना भी मत। 
प्रेम वो नहीं आप जिसके साथ हैं प्रेम वो है आप जिसके बिना जी नहीं सकते
झगड़े को सिर्फ किसी विषय तक सीमित रखना संबंध तक मत ले आना
कभी माफी मांगने से खुद को छोटा मत महसूस करना,
कुछ ऐसी आदत या काम चालू करना जिसमे दोनों की भूमिका हो
अपनें आप को प्रेम करना क्योंकि वो आपसे प्रेम करते हैं
एक दूसरे को हमेशा अचरज में डालते रहना, खुश करना
प्रेम और प्रेम पात्र को लेकर उदार रहना
प्यार उम्र के साथ घटना नहीं बढ़ना चाहिए। 
अपने प्यार की सलामती की ईश्वर से प्रार्थना करते रहना। 
अपने प्रेम को कभी खोना मत क्योंकि आपका पद, पैसा, प्रसिद्धि और शक्ति कभी आपको आपका प्रेम नहीं दिला पाएगी। 

@मन्यु आत्रेय

Monday 1 March 2021

आपकी निष्ठा किसके प्रति है?

निष्ठा बहुत बड़ी चीज़ है। 
आप जिसके प्रति निष्ठा रखते हैं उसके प्रति समर्पित होते हैं,उसके पक्ष में खड़े होते हैं 
उसके प्रति ईमानदार रहते हैं और कभी उसके खिलाफ कोई काम नही करते। 
निष्ठा का अर्थ है किंतु परंतु से ऊपर उठना। 
जैसे ही आपमे कोई संशय आता है आपकी निष्ठा भंग हो जाती है। 
निष्ठा की परख धर्मसंकट के समय होती है। 
निष्ठा सही गलत सिर्फ इस लिहाज से जानती है 
कि जिसके प्रति निष्ठा है उसका साथ देना सही है 
और उसका साथ नहीं देना गलत है। 
आप जिसका साथ देते हैं आपकी असली निष्ठा उसके प्रति होती है। 
निष्ठा वो नौका है जो परिस्थितियों की झंझाओं में नहीं डोलती।
निष्ठा वो पक्षी नहीं जो आज इस डाल पर कल उस डाल पर जा बैठे। 
जिसकी निष्ठा अटूट होती है उसका ध्यान भटकता नहीं है। 
जो अवसरवादी लोग होते हैं वे किसी भी क्षण दल बदल कर सकते हैं। 
निष्ठावान हमेशा समर्पित होगा क्योंकि वो उसे केंद्र में रखता है 
जिसके प्रति वो निष्ठा रखता है।
जब हम अपने आप के प्रति निष्ठा नहीं रखते तो हमारा व्यक्तित्व बिखर जाता है। 
जब हम अपने काम के प्रति निष्ठा नहीं रखते 
तो हमारे काम का स्तर घटिया हो जाता है, 
सब को पता चल जाता है कि हम इस काम को लेकर निर्भर होने योग्य नहीं हैं। 
जब हम अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा रखते हैं तो उसे ज़रूर पाते हैं। 
जब हम देश के प्रति निष्ठावान रहते हैं तो देश पहले के उसूल पर चलते हैं
जब हम रिश्तों को लेकर निष्ठावान नहीं रहते 
तो हमारा असली चरित्र सामने आता है 
और अच्छे से अच्छा रिश्ता टूट जाता है, बेमानी हो जाता है। 
निष्ठा से कर्तव्य जुड़ा होता है 
चाहे जो हो जाये ये करना ही है 
और ये नहीं ही करना है यही निष्ठा का पैमाना है।
आप जब न करने वाली बातें कर गुज़रते हैं 
और करने वाली बातें नहीं करते 
तो आपका व्यवहार एक निष्ठ और ईमानदार नहीं रह जाता। 
चूक स्वीकार्य है लेकिन धोखा बिल्कुल स्वीकार्य नहीं। 
निष्ठावान कभी बहानेबाज़ी नहीं करता। 
लोग अक्सर किसी के प्रति निष्ठा जताते हैं भरोसा दिलाने का प्रयास करते हैं
परंतु निष्ठा जताने से नहीं अमल में लाने पर प्रमाणित होती है। 
निष्ठा कभी भी नक़ली नहीं होती, वो या तो होगी या नहीं होगी। 
आपके चरित्र की ताकत आपके निष्ठावान होने में छुपी हुई है। 
इसलिए अपने आप को तोलिये आप किसके प्रति निष्ठा रखते हैं? 

@मन्यु आत्रेय

करीबी लोगों के प्रति हम लापरवाह हो जाते हैं

कुछ लोग जो हमारे करीबी होते हैं, अक्सर हम उनके प्रति लापरवाह हो जाते हैं। पति को पता नहीं चलता कि पत्नी किस शारीरिक समस्या से ज...