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Thursday 23 September 2021

किसे नियंत्रित करना चाहते हैं आप ?

किसे नियंत्रित करना चाहते हैं आप ? 
~मन्यु आत्रेय
आदमी के दुख का एक बहुत बड़ा कारण है दूसरे को नियंत्रित करने की इच्छा। नियंत्रित करने की क्षमता एक ताक़त है, लेकिन नियंत्रित करने की इच्छा एक विकार है। 
लोगों के आपसी संबंधों में खटास इसीलिए आ जाती है कि लोग एक दूसरे को सामने वाले की सहमति और इच्छा के बिना तथा अपनी क्षमता के पार जाकर नियंत्रित करना चाहते हैं। 
सास बहू में, प्रेमी प्रेमिका में, पति पत्नी में, संतान और माता पिता में इसीलिए संबंध खराब हो जाते हैं। नियंत्रित न कर पाने की खीझ आपको बहुत गहरे में असंतुलित कर देती है और आप स्वयं पर अपना नियंत्रण खो बैठते हैं। 
स्वयं को स्वतंत्र मानना आपको दूसरे के नियंत्रण में जाने से रोकता है वैसे ही दूसरा व्यक्ति भी आपके नियंत्रण में आने को अपनी परतन्त्रता समझ लेता है। 
आप किसे नियंत्रित कर सकते है, किसे नहीं। किसे नियंत्रित करना आपके लिए अनिवार्य है किसे गैर जरूरी, इसे समझना व्यर्थ की परेशानी से बचा लेता है। 
जैसे जैसे आपका नियंत्रण बढ़ता है वैसे वैसे आपकी जवाबदेही बढ़ती है और आप स्वयं गुलाम होते चले जाते हैं। जिसके नियंत्रित करने की शक्ति जितनी ज्यादा होती है उसके पास खोने के लिए भी उतना ज्यादा होता है। जितनी जल्दी आप नियंत्रित करना चाहेंगे उतनी जल्दी खोने की ओर अग्रसर होते जाएंगे। 
परजीवी लोग अक्सर स्वयं को आपके नियंत्रण में डाल कर सारा दायित्व आपके कांधों पर डालना चाहते हैं ऐसे लोगों को पहचानना सीखिए। 
कुछ लोगों को नियंत्रण शुरू में फूलों का हार लगता है लेकिन बाद में वह गले का फंदा बन जाता है। कुछ लोगों को शुरू में नियंत्रण दमघोंटू लगता है पर बाद में वह उन्हें सुविधाजनक लगने लगता है। 
अगर किसी भी बात का दोष आप पर आ रहा है तो उसके मूल में कहीं न कहीं नियंत्रण की स्थिति अवश्य होगी। नियंत्रण अहंकार से जुड़ जाए तो विनाशकारी हो जाता है इसलिए काँटों के इस ताज को पहनने से पहले दसियों बार सोचिये। 
नियंत्रित करना जब आपका कर्तव्य हो, जब अनिवार्य हो और आपके तथा सामने वाले के अस्तित्व की आवश्यकता हो सिर्फ तभी नियंत्रित करने का प्रयास कीजिये। 
सबसे पहले ये मान के शांत हो जाइए कि आपके नियंत्रण में कुछ भी नहीं है, आप सिर्फ प्रयास करके अपनी ज़िम्मेदारी निभा सकते हैं। और फिर जीवन के जिस विषय मे आपको नियंत्रण हासिल करना है उस बारे में सच्चे मन और पूरी क्षमता से प्रयास कीजिये। अपने आप को शंका कुशंका से मान अपमान, स्वीकार के हर्ष या ठुकराए जाने के विषाद से दूर रखिये। सब कुछ किसी के भी नियंत्रण में नहीं है। 
आप ऐसे कदम उठाएं कि लोग स्वेच्छा से वो करें जो आप चाहते हैं, यही शांतिपूर्ण तरीका है। 

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