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Tuesday 22 August 2023

करीबी लोगों के प्रति हम लापरवाह हो जाते हैं

कुछ लोग जो हमारे करीबी होते हैं, अक्सर हम उनके प्रति लापरवाह हो जाते हैं। पति को पता नहीं चलता कि पत्नी किस शारीरिक समस्या से जूझ रही है। पिता को पता नहीं होता कि उसका बेटा आजकल सिगरेट पीने लगा है या बेटी किसी के साथ रफूचक्कर होने के चक्कर मे है। 
हमारा कोई घनिष्ठ दोस्त कर्ज़ में गले तक डूबा हुआ अपनी आत्महत्या की योजना बना चुका होता है। हमारा कोई विश्वस्त साथी हमारे दुश्मन से हाथ मिला चुका होता है और हमें पता ही नहीं चलता। 

हम अक्सर अपने करीबी लोगों के प्रति लापरवाह होते जाते हैं। वो हमारे जीवन के इतने आम हिस्से बन चुके होते हैं कि उनके जीवन मे घटित होने वाले छोटे बड़े महत्वपूर्ण बदलाव हमें रोज़मर्रा के जीवन मे दिखाई ही नहीं आते। जब आप कई दिनों बाद किसी को देखते हैं तो वो पहले से दुबला हुआ है या मोटा इसका झट से पता चल जाता है। कई दिनों बाद मिलने वाले किसी के व्यवहार में हुए बदलाव को आप आसानी से समझ जाते हैं। 

लेकिन जब रोज़ थोड़ा थोड़ा सा बदलाव हो, रोज़ थोड़ा थोड़ा सा आप देखें तो उस रोज़मर्रा के परिवर्तन के आप आदी हो जाते हैं। स्थितियां अंदर ही अंदर बदलती जाती हैं और आप को समझ नहीं आता। बहूत बार ऐसा भी होता है कि सामने वाले व्यक्ति के जीवन मे चल रही बातों को लेकर आप उतने संजीदा नहीं होते, आपकी प्राथमिकताएं उस समय शायद कुछ और होती हैं। या आप को उतना वास्ता महसूस नहीं होता। 
कई बार "इसका तो हमेशा का ही ऐसा है" मान कर हम हल्के में ले लेते हैं। कभी कभी हम अपने मसलों में इतने अधिक डूब चुके होते हैं कि हमें ये देखने की फुरसत भी नहीं होती कि हमारे उस करीबी के जीवन में आखिर चल क्या रहा है? 
आपको दिखता नहीं कि उनका मूड उखड़ा हुआ रहता है, चिड़चिड़ापन आता जा रहा है, पहले जैसा संवाद नहीं करते, अपने मे खोए रहते हैं। आपको नहीं दिखता कि उनके व्यवहार में व्यक्तित्व में सूक्ष्म बदलाव आते जा रहे हैं। रिश्ते में बढ़ती दूरियों के पीछे कई बार यही बहुत बड़ा कारण बन जाता है जब एक को लगता है कि दूसरा उसमे रुचि नहीं लेता, गंभीरता से नहीं लेता, अपनी ही लगाता रहता है, प्राथमिकता में नहीं रखता, बिना बोले समझता नहीं या सीधे शब्दों में कहें तो लापरवाह हो जाता है। 

कभी कभी हमारे अपने करीबी लोग बहुत बड़ी मानसिक लड़ाई लड़ रहे होते हैं ऐसी लड़ाई जो हमारे सामने होते हुए भी हम देख नहीं पाते। किसी अंतर्द्वंद्व से गुज़र रहे होते हैं जिसके पहलुओं पर हमारी नज़र नहीं जाती। कोई संकट उन्हें घेरे हुए होता है, कोई बात उन्हें भीतर ही भीतर खाये जाती है, लेकिन चूंकि हम उन्हें लापरवाह, गैर जिम्मेदार, अरुचिपूर्ण या उपेक्षा करते हुए लगते हैं तो वे हमसे अपने मन की बात अपनी वेदना अपनी समस्या, दुख, तकलीफ, परेशानी साझा करने से हिचकते हैं। 

हो सकता है कि जब जब उन्होंने हमें अपनी बात बताने की कोशिश की थी तो हमने उन्हें एक प्रकार से ठुकरा दिया, हल्के में लिया, दरकिनार कर दिया या अपना पल्ला झाड़ लिया था जिससे उनमें ठुकराए जाने का अनुभव हुआ। उनकी अपेक्षाओं को हमने पूरा नहीं किया या शायद उनकी अंतिम आशा को भी तोड़ दिया हो। 
हमने छोटी सी बात पर तमाशा खड़ा कर दिया हो, गलत व्यवहार किया हो तो भी वो अपनी बात साझा नहीं करते। 
कभी कभी उन्हें हमारी अप्रिय प्रतिक्रिया का भय होता है या उन्हें लगता है कि हम पर्याप्त परिपक्वता से शायद नहीं ले पाएंगे इसलिए वो हमसे साझा नहीं करते और भीतर ही भीतर अकेले पड़ते जाते हैं हमसे दूर होते चले जाते हैं। 

ये बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि हमने अपने करीबी लोगों के साथ अच्छा समय देखा था, वो कदाचित हमारे विपरीत समय मे हमारे साथ भी खड़े हुए थे, शायद अनेक प्रकार से हमारी मदद भी की थी। तो क्या हमारा ये कर्तव्य नहीं बनता कि हम उनके प्रति जागरूक हों, ज़िम्मेदार बनें, साथ निभाएं, उनके लिए खड़े रहें। अगर आप इससे सहमत नहीं हैं तो आप स्वार्थी इंसान हैं। 

यदि आप अपने करीबी लोगों के प्रति लापरवाह रहेंगे तो एक दिन पूरी तरह से अकेले पड़ जाएंगे। आपके जीवन का सौंदर्य अपने करीबी लोगों के कारण है। आपकी सुविधा में, आपकी सुरक्षा में, आपके काम बनने में आपके करीबी लोगों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इसके प्रति लापरवाह होना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना होता है। 

तो देर मत कीजिये, अपने करीबी लोगों की सच्चे भाव से खोज खबर लीजिए, जानिए कि अगर आप उनकी किसी वेदना को दूर कर सकें, समस्या को सुलझा सकें, उन्हें अच्छा महसूस करवा सकें। आपके करीबी लोग आपकी ताक़त हैं इसलिए यह आपके लिए भी बहुत ज़रूरी है। 

@मन्यु आत्रेय

Sunday 20 August 2023

कौन करता है आपकी परवाह ?

कौन करता है आपकी परवाह? कौन आपकी सच्ची परवाह करता है और कौन परवाह करने का दिखावा करता है इसके अंतर को जानना बहुत जरूरी है। परवाह सिर्फ़ शब्दों में बयान करने की बात नहीं है बल्कि यह अपने क्रियाकलाप से प्रमाणित करने वाली बात है। परवाह असल मे प्रेम का परिचायक है। परवाह का विज्ञापन नहीं करना पड़ता वह अपने आप ही पता चल जाती है। 

अक्सर होता ये है कि लोग उन लोगों से बड़ी जल्दी प्रभावित हो जाते हैं जो उनकी बड़ी परवाह दिखाते हैं। परवाह करने और दिखाने में ज़मीन आसमान का अंतर होता है। परवाह का दिखावा सिर्फ एक शुगर कोट होता है जो थोडी सी आंच बढ़ने पर झट से पिघल जाता है। 

जिसे आपकी परवाह होती है वो अपनी पसंदगी नापसंदगी में इस बात का ख्याल रखता है कि आपको क्या पसंद आयेगा और क्या नापंसद होगा। वो इस बात का खास विचार करके चलता है कि उसके किस काम पर आपकी कैसी प्रतिक्रिया आ सकती है। वो ये सोचता है कि उसकी किसी बात से उसके किसी तर्क वितर्क से आपको कैसा महसूस होगा। 

जिसे आपकी परवाह होती है वो आपकी सुविधा, सम्मान और सुरक्षा तीनों का ध्यान रखता है। ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता जिससे आप असुविधा में आ जाये, जिससे आपके सम्मान में कोई कमी हो, या जिसके कारण आप मुश्किल में पड़ें या किसी प्रकार के संकट से घिर जायें। 

जिसे आपकी परवाह होती है वह ऊपर से चाहे कितनी ही बेरूखी दिखाये, कितना भी झलकाये कि उसे आपकी कोई खास परवाह नहीं है लेकिन उसके क्रिया कलाप से ये स्पष्ट हो जाता है कि उसे आपकी परवाह है। कुछ रिश्तों में तल्खी़ बनी रहती है लेकिन उसके बावजूद एक दूसरे के लिये वक़्त पर खड़े रहने, मुसीबत में साथ देने, उसके लिये बोलने की छुपी हुई भावना होती है। जो आपकी परवाह करता है वो अपनी ओर से आपको खुश करने का प्रयास करता है, आपके बुरे समय में आपकी परेशानियों में वो अडिग होकर साथ देता है।  आपसे बात करने को तैयार रहता है। 

परवाह का दिखावा करने वाले सिर्फ़ बातें करते हैं, कठिन समय में वे हमेशा आपको नदारद मिलेंगे, उनका कोई जरूरी काम आ जायेगा, या उनकी कोई बड़ी परेशानी होगी, या उनकी तबीयत खराब होगी या कोई न कोई ऐसा कारण निकल ही आयेगा जिसका बहाना बनाकर वो किनारे हो जायेंगे और आपको अकेला छोड़ देंगे। 

जिसे आपकी सच्ची परवाह होती है वो कभी आपको अकेला नहीं छोड़ पाता। जो आपकी निःस्वार्थ भावना से परवाह करते हैं, ऐसे लोगों को भी मत खोईये। उन्हें कभी उपेक्षित मत कीजिये, उन्हें कभी अकेला मत छोड़िये। ये वो लोग हैं जिनके माध्यम से ईश्वर आपकी देखभाल करना चाहता है। 

कई लोग ऐसे होंगे जो आपकी परवाह तो करते हैं लेकिन सम्यक रूप से बता नहीं पाते, सामने नहीं आ पाते, दिखा नहीं पाते कि उन्हें आपकी कितनी परवाह है। ऐसे लोगों को पहचानिये। जो आपकी परवाह करे, बदले में आप उसकी भी परवाह करें, उसकी पसंद, नापंसद, सम्मान, अपमान, सुख-दुख, सुरक्षा और जा़ेखि़म के प्रति जागरूक रहें और हर स्तर पर उसकी मदद करने के लिये तैयार रहें। 

कभी भी ज़्यादा परवाह दिखाना सच्ची परवाह करने का लक्षण नहीं होता। अक़्सर जो पज़ेसिव लोग होते हैं वे सामने वाले को हद से ज़्यादा परवाह दिखाकर अपने नियंत्रण में कर लेते हैं। कभी कभी ज़्यादा परवाह दिखाया जाना लपेटे में लेने का संकेत भी होता है। 

आप भी अगर किसी की परवाह करें तो उन्हें थोड़ा सा महसूस करायें कि आप उनकी परवाह करते हैं। परवाह वैसे झलकाइये जैसे फ़िल्म का नायक अपनी जीन्स में खोंसी हुई पिस्टल झलकाता है वैसे नहीं जैसे वेब सीरीज़ का अपराधी हाथ मे A K 47 लिए फिरता रहता है।  परवाह को भरोसा जगाने वाली चीज रखिये तमाशा बनाने वाली नहीं। 

अगर आप भी किसी का मज़ाक नहीं उड़ाते, अपमान नहीं करते, दोष नहीं मढ़ते, उनके रहस्यों का तमाशा नहीं खड़ा करते, सिर्फ़ अपनी ही भावनाओं, परिस्थितियो और समस्याओं का रोना उनके आगे नहीं रोते, उन की निगरानी या जासूसी नहीं करते, निंदा नहीं करते, उनके काम बनाने का प्रयास करते हैं तो आप परवाह कर रहे हैं। 
उनके लिये थोड़ा बहुत अपना मन मार कर समझौता कर लेते हैं और खुश होते हैं कि वो खुश हैं, उनके लिये समय निकालते हैं, उनकी बातें सुनते हैं, समझने का प्रयास करते हैं, उनसे माफ़ी मांगने में हिचकते नहीं, संबंध सुधारने के हर संभव प्रयास करते हैं, अपनी गलतियों को न्यायोचित सिद्ध करके उन्हें झूठा साबित करने की कोशिश नहीं करते तो समझ लीजिये आप उनकी सच्ची परवाह करते हैं। 

यदि कोई आपके लिये ऐसा करता है तो समझिये वो भी आपकी सच्ची परवाह करता है। परवाह किया जाना अच्छा लगता है। थोड़ी सी परवाह किसी हताश व्यक्ति का अकेलापन दूर कर सकती है। किसी को जीने का संबल दे सकती है। किसी से आपके रिश्ते को मज़बूत कर सकती है लेकिन याद रखिये किसी की परवाह ज़बरदस्ती हासिल नहीं की जा सकती। 
और ये भी मत भूलिए कि मुझे आप सब की परवाह है, तभी तो ये ब्लॉग लिखा है!!

Friday 18 August 2023

लोग काम निकलवाना चाहते हैं

एक शेर मुझे बड़ा सटीक लगता है- 
"दिल मेरा लेने की ख़ातिर मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं, मतलब निकल जाने के बाद" 
लोग अपना काम निकलवाना चाहते हैं। जब काम होता है तो आपसे संपर्क करते हैं, रखते हैं, और जब काम निकल जाता है तो धीरे से आपके जीवन से ऐसे नदारद हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। 
आप का महत्व इस बात से नहीं होता कि आपका पद कितना बड़ा है, आपका महत्व इस बात से तय होता है कि आप काम कितने आते हैं। 
यह आम धारणा है कि यदि आपसे किसी का काम बनता है तो आप अच्छे आदमी हैं, अगर आपसे काम नहीं बनता तो आप महत्वहीन और प्रभावहीन आदमी हैं इसीलिए कुछ लोग अपनी क्षमता से बढ़कर दूसरों के काम करवाने की ज़िम्मेदारी लेकर अपने आपको महत्वपूर्ण दिखाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों के चक्कर मे ज़रूरतमंद व्यक्ति का समय, पैसा, मन की शांति, उम्मीद सब का नुकसान हो जाता है । 

काम जितना बड़ा, जटिल या महत्वपूर्ण होगा उसी के अनुरूप लोग अपनी रणनीति बनाकर चलते हैं। बहुतेरे लोग अपने काम निकलवाने के लिए बड़े पापड़ बेलते हैं और काम निकल जाने के बाद दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देते हैं। अगर आप लंबे समय तक किसी के काम आने वाले हैं तो वह संबंध बनाए रखता है अन्यथा आप कौन और मैं कौन! 

कुछ लोग इस तरीके से आपको अपनी व्यथा सुनाते हैं कि आपके भीतर का फरिश्ता जाग जाता है और आप खुद होकर उसके काम करने को बेताब हो जाते हैं। कुछ ऐसे कृतघ्न लोग भी होते हैं जो कभी स्वीकार नहीं करते कि उनका काम आपके कारण बना है, या आपने मदद की है।  

कभी कभी किसी का काम बनाने में हम व्यर्थ के चक्करों में उलझ जाते हैं घिर जाते हैं। खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आना या होम करते हाथ जलने वाली स्थिति हो जाती है। आप निःस्वार्थ भाव से काम करते हैं उस पर भी लोग शंका करने लगते हैं कि इसका क्या स्वार्थ है जो ये मदद कर रहा है? 

कभी कभी हमें पता ही नहीं चलता और हम किसी का काम बनाते रहते हैं। किसी बहुत बड़े काम का एक छोटा हिस्सा हमसे करवा लिया जाता है और हमें हवा तक नहीं लगती। ऐसे में हम कहीं फंस भी सकते हैं। कभी कभी छोटे काम सिर्फ किसी बड़े काम को करवाने की पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए करवाये जाते हैं। बहुत बार लोग आपको धोखे में रखकर आपसे कोई काम निकलवा लेते हैं यह आपके लिए घातक हो सकता है। 

वक़्त पड़ने पर एक दूसरे के काम आना सम्बन्धों को मजबूत करता है। आप अपने करीबी लोगों के काम करने के लिए भिड़ जाते हैं और वो भी शायद ऐसा ही करते होंगे। 
कभी कभी एक छोटे से काम से बड़े संबंध बन जाते हैं। लेकिन आज के दौर में बहुत से लोग संबंध ही इसलिए बनाते हैं ताकि अपने काम निकलवा सकें। लोगों के काम आना आपकी उपलब्धि है अच्छी बात है लेकिन एक व्यक्ति का काम बनाने के चक्कर मे किसी दूसरे का काम बिगाड़ना उसकी नज़र में आपको खलनायक बना देगा। 
घर परिवार कारोबार समाज हर जगह पर आपको काम निकलवाने वाले लोग मिलेंगे। काम निकलवाने वाले लोगों को पहचानिए। ये समझने की कोशिश कीजिये कि इसका काम करने से मेरी कोई हानि तो नहीं है, कहीं उलझना तो नहीं पड़ेगा, क्या ये इतना पात्र है कि इसके लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया जाए ? 
तो क्या करना चाहिए- 
1) स्वार्थी और पलटू राम लोगों को पहचानिए और उनके झमेले में फंसने से बचिए। 
2) लोगों के काम तब तक मत लीजिए जब तक उसे करवाने की औकात न हो। 
3) अपने किये कामों का ज़्यादा प्रचार मत कीजिये वरना उससे आपको नुकसान होगा। 
4) नेकी कर दरिया में डालने की आदत बना लीजिए। ये मान कर चलिए कि इसका हर बार कोई प्रतिफल आपको नहीं मिलने वाला है। 
5) किसी का काम करवाने के चक्कर में कुछ नियम विरुद्ध या गैर कानूनी काम करने के परिणाम भुगतने तैयार रहिए। 
6) लोगों के काम करवाने की अपनी क्षमता बढ़ाते रहिए, लेकिन इसे सोच समझ कर खर्च कीजिये। 
7) किसी का ऐसा काम मत कीजिये जिसका आप पर लंबे समय तक विपरीत परिणाम पड़ता रहेगा। 
8) काम लेकर आने वाले व्यक्ति के दिमाग को पढ़ने की कोशिश कीजिये, पूरे मामले को समझिए। गंभीर मामलों में विशेष सतर्क रहिए। 

 @मन्यु आत्रेय

Thursday 17 August 2023

अपनी गलतियों का अचार डालिये।

अपनी ग़लतियों का अचार डालिये। दुनिया का कोई भी इंसान हमेशा सही सही नहीं कर सकता उससे गलतियां होनी स्वाभाविक है। गलतियां किससे नहीं होती? अगर आपसे कभी कोई गलती नहीं हुई तो या तो आप फरिश्ते हैं या फिर आप झूठे हैं। 

चूक, त्रुटि, भूल, ग़लती लगभग आसपास के अर्थ वाले शब्द हैं। गलती होने का कोई भी कारण हो सकता है जैसे ठीक से समझ नहीं पाना, सही निर्णय नहीं ले पाना, लापरवाही कर जाना, सही तरीके से कोई काम नहीं कर पाना। गलती होने में नीयत खराब नहीं होती, लेकिन गलती करने में नीयत की खराबी हो सकती है। होना स्वाभाविक है, करना दोषपूर्ण है। 
कोई भी बात हमेशा सही या गलत नहीं रहती। देश, काल, परिस्थितियों के अनुसार सही ग़लत के दायरे बदलते रखते हैं। सही और गलत का फैसला नियमों, कानूनों, समाज और अपनी अंदरूनी आवाज़ के अनुसार होता है। गलती के लिए प्रायश्चित भी करना पड़ता है तो दंड भी भुगतना पड़ सकता है। 
पर यह मत भूलना कि कुछ गलतियों का प्रायश्चित कभी नहीं हो सकता। दंड भुगतने के बावजूद आप कभी उस गलती की भरपाई नहीं कर सकते। एक आदमी की गलती दूसरे किसी व्यक्ति की अपूरणीय क्षति कर सकती है। उसके जीवन की दिशा मोड़ सकती है उसे पैसे, सम्मान, सुकून की हानि पहुंचा सकती है इसलिए अपनी गलतियों के प्रति जागरूक रहिए। 
कानूनों की गलती आपको अपराधी बना सकती है, धर्म के नज़रिए की गलती पापी घोषित कर सकती है। स्वास्थ्य के लिए की गई गलती रोगी बना सकती है और सुरक्षा के लिए की गई गलती मृत्यु के मुख तक पहुंचा सकती है। काम मे की गई गलती सम्मान और आर्थिक दृष्टि से हानि कर सकती है। लोगों को पहचानने में कई गयी गलती पूरे जीवन को बर्बाद कर सकती है। 
आपकी गलतियों पर आपके दुश्मनों और प्रतिद्वंद्वियों की पूरी नज़र होती है और वे उसका लाभ उठाने से पीछे नहीं रहते। आपसे प्रेम करने वाले आपकी गलतियों को कुछेक बार माफ भी कर सकते हैं लेकिन यदि आप बार बार वही गलती करते हैं तब वह चूक नहीं चरित्र बन जाता है और सब की माफ करने की अलग अलग सीमा होती है। अपनी गलतियों से सीखते जाएं तो अपनी स्थिति को मजबूत किया जा सकता है, सुधारा जा सकता है। 
दूसरों की गलतियों के पीछे की नीयत को भांपने का अभ्यास कीजिये। किसकी गलती आपके लिए कितनी हानिकारक हो सकती है इसे तोलते रहिए। गलतियां पानी के जहाज में किये हुए छेद की तरह होती हैं, छोटी हों तो भी नुकसान पहुंचा सकती है। गलती करने वाले को माफ करने से ज़्यादा ज़रूरी है उनसे होने वाले प्रभाव को रोकना। 
अक्सर हम ये गलती करते हैं कि अपने करीबी या प्रिय लोगों की बड़ी गलतियों को भी नज़र अंदाज़ करते हैं और बिना सुधारे आसानी से उन्हें माफ कर देते हैं। 
आपके द्वारा दी गई माफी यदि उसे बार बार वही गलती करने की हिम्मत या लालच दे तो ये आपकी गलती हो जाएगी। इसलिए सोच समझ कर किसी की गलती को माफ कीजिये। दूसरों की गलतियों को एक सीमा तक ही क्षमा किया जा सकता है, जैसे दूसरे आपको एक सीमा तक ही माफ कर सकते हैं। 
सही आदमी की गलतियों को माफ करने के अपने मानदंड बनाइये। गलतियों पर विलाप मत कीजिये, जीवन के रस को मत समाप्त कीजिये। अपने आप की गलतियों को भी माफ कीजिये। माफ करने से पहले गलती के दुष्प्रभाव साफ करिए। 
जब आपको आगे बढ़ने में बाधाएँ आ रही हों और कारण समझ नहीं आ रहा हो तो मान के चलिए कि आपसे या आपसे सम्बंधित किसी व्यक्ति से ऐसी कोई गलती हुई है जो आपके रास्ते मे बाधा बन गयी है। क्योंकि इंसान को जितनी अच्छी तरह दूसरों की गलतियां दिखती हैं उतने अच्छे से अपनी गलतियां नहीं दिखती।।
तो सार ये है कि गलतियों से ऊपर उठिए अपनी भी और दूसरों की भी। गलतियों में तौबा और प्रायश्चित का प्रिजर्वेटिव मिलाइए। उसमे सीखने का नमक मिलाइए। गलतियों के प्रभाव को मिटाने का तेल मिलाइए। अपनी और दूसरों की गलतियों का अचार डालिये और मर्तबान का मुंह बंद करके कहीं रख दीजिए ताकि बाद में उनका चटखारा लिया जा सके। 

@ मन्यु आत्रेय

Wednesday 16 August 2023

कैसे लोग हैं आपके आसपास

आपके जीवन में कैसे लोग है  इसका बहुत बड़ा प्रभाव आप पर पड़ता है। अगर आपकी सफलता और उपलब्धि के पीछे किसी और की भूमिका भी होती है तो आप की असफलता, पराजय, कमज़ोरी, चूक आदि के पीछे अक्सर कुछ और लोगों का भी हाथ होता है। 

अगर आप किसी काम में सफलता नहीं पा सके तो उसके पीछे आपकी अपनी कमियों के अलावा कोई न कोई ऐसा आदमी जरूर रहा होगा जिसने अप्रत्यक्ष रूप से आपके कामों में व्यवधान पैदा किया होगा, आपको भटकाया होगा, भ्रमित किया होगा, जिसने आप का मनोबल तोड़ने की कोशिश की होगी, या आपकी मदद करने वाले लोगों को परेशान किया होगा, जिसने आपके कामों में सीधा-सीधा रोड़ा अटकाया होगा। 

हो सकता है कोई व्यक्ति ऐसा हो जो जानता नहीं हो लेकिन उसके कारण आपको नुकसान हो रहा हो। हो सकता है कि सिर्फ उसकी निकटता के कारण आपके कई काम नहीं बनते हो या फिर वह आपकी गोपनीय बातों को बिना समझे पूछे किसी से साझा कर देता हो। 

अपने आसपास के लोगों को समझदारी से चुनिए। अगर उन्हें चुन पाना आपके बस में नहीं है तो कम से कम यह अवश्य भांपने की कोशिश कीजिये कि किस व्यक्ति का संबंध आपके जीवन की सफलताओं असफलताओं से है। कौन आपके लिए साधक है कौन बाधक है। 

कभी कभी लोग अपनी मान्यता,अपनी धारणा, अपने स्वार्थ-फायदे, दूसरों से अपने संबंधों, किसी बात का बदला लेने के लिए आपके लिए अहितकारी बन जाते हैं। आध्यात्मिक विज्ञान की मान्यता है कि कुछ लोग जिनकी दशा खराब चल रही होती है या जिनके कर्म गड़बड़ होते हैं वो जिस किसी से जुड़ते हैं उसका बंटाधार कर देते हैं।

हालांकि हम ये नहीं जान सकते कि किसकी कैसी दशा चल रही है, लेकिन उनके होते हुए दिल मे अजीब सी घबराहट हो सकती है, चित्त की शांति भंग हो सकती है, मन मे उद्विग्नता या संशय आ सकता है। लेकिन यह स्वयं होकर होना चाहिए न कि आपकी उस व्यक्ति के प्रति धारणाओं के परिणामस्वरूप। 

एक एक बिंदु जोड़ने से रेखा स्पष्ट हो जाती है। एक एक घटना पर शांति से विचार करके देखने से समझ आने लगता है कि जो कुछ हुआ उसमे स्वयं की ज़िम्मेदारी कितनी थी और दूसरों की भूमिका कितनी थी। आप ध्यान नहीं देते कि कौनसा व्यक्ति आपके लिए कैसा प्रभाव पैदा कर रहा है। 

कोई व्यक्ति दिखने में कैसा है, सुंदर है या असुंदर है, सुशिक्षित है या अनपढ़ है, आर्थिक रूप से सक्षम है या गरीब है, आपका सहयोग करता दिख रहा है या असहयोग कर रहा है, इसका बहुत ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता। असली फर्क उसकी मानसिकता का पड़ता है, उसके मक़सद का पड़ता है, उसे जानना ज़रूरी है। गलत व्यक्ति से जुड़ना जीवन की किसी बड़ी शिकस्त या झमेले की शुरुवात भी हो सकता है।

अपने दोस्त, अपनी टीम के सदस्य, अपने आसपास के लोग, अपने राज़दार बहुत सोच समझ कर चुनिए और शुरुवाती दौर में उनके प्रति जागरूक रहिए। उनके प्रभावों को आंकते रहिए। 
अपने जीवन से जुड़े लोगों को देखिए, समझिए, उनका आकलन कीजिये । अपने बोध को उदित होने दीजिए। लोगों से उठने वाले संवेदनों को समझने की आदत डालिये।  यह धीरे धीरे होगा लेकिन अगर आप अपने जीवन के लोगों को ठीक से समझ पाए तो यह एक बहुत बड़ी सफलता है। 

@मन्यु आत्रेय

Tuesday 15 August 2023

पाती किसी के लिए, सीख सब के लिए

मेरे सहभागी पथिक

तुम्हारे भीतर निरंतर अंतर्द्वंद्व चलता रहता है शरीर मन बुद्धि अहंकार और आत्मा के बीच। कभी तुम मनोदैहिक ज़रूरतों से हार जाते हो, कभी बुद्धि और अहंकार से घिर कर अपने मन की नहीं सुनते अपनी आत्मा की नहीं सुनते। जब जिसका पलड़ा भारी होता है तब वैसा फैसला ले लेते हो। यह स्वाभाविक और प्राकृतिक है। बस इस प्रक्रिया में अपने आप को उपयुक्त की ओर ले जाना चाहिए। उपयुक्त यानी जिससे नुक़सान न हो। 

कुछ घटनाक्रम बहुत सूक्ष्म तरीके से होते हैं। हमे पता नहीं चलता क्योंकि उनकी शुरुवात इतनी ज्यादा महत्वहीन होती है कि हम उसे गिनती में नहीं लाते। जैसे जंगल में उठती एक चिंगारी उतनी महत्वपूर्ण नहीं होती। परंतु बाद में वही एक चिंगारी दावानल बन जाती है। 

जोंक जब त्वचा से चिपकती है तो पता नहीं चलता। पता तब चलता है जब वो खून पीना शुरू कर चुकी होती है। कुछ लोग ऐसे ही होते हैं। हमसे जुड़ कर कब हमारा नुकसान करने लगते हैं हमे समझ नहीं आता। बड़ा नुकसान हो जाने के बाद हमें पता चलता है कि नुक़सान हो गया। 

अगर तुम अपनी आत्मा की या अंदरूनी आवाज़ पर ध्यान दो ( जो कि तुम नहीं देते) तो वो शुरू से बताती है कि कुछ तो अजीब सा हो रहा है, कुछ तो गलत हो रहा है, कुछ तो है जो अंदर से हानिकारक है। 

हर व्यक्ति में किसी को लाभ पहुंचाने या नुकसान करने की एक अदृश्य शक्ति होती है। कभी कभी न चाहते हुए भी हमसे किसी का अहित हो जाता है, और कभी कभी इसके कारण हमारा ही अहित हो जाता है। न तो कारण समझ आता है और न परिणाम से उसे उज़ समय जोड़ा जा सकता है। चूंकि बुद्धि कारण और परिणाम के संबंध पर निर्णय लेती है हम अपनी आत्मा की अनुभूति को नज़र अंदाज़ कर देते हैं जो हमें बताती है कि इस बंदे के साथ कुछ तो अपना गलत है। 

कुछ नरभक्षी पौधे बेहद सुंदर फूल वाले होते हैं, उनमें से बेहद आकर्षक और मादक गंध और रंग निकलते हैं। उनसे आकर्षित होकर जब कोई तितली उस फूल पर जाकर बैठती है तो पहले उसके पंख गीले कर देते हैं फिर वो उड़ न पाने के कारण चिपकी रह जाती है और नरभक्षी पौधा तितली को निगल जाता है। ऐसे ही कई लोग होते हैं। 

ऊपर उठ कर देखने से सब समझ आ जाता है। कौन सा काम क्यों बिगड़ रहा है, कौन सी परेशानी क्यों आयी है। जब समस्या आने वाली होती है तो बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। हम गलत निर्णय लेने लगते हैं और उस समय अपनी आत्मा की आवाज़ को सुनना बंद कर देते हैं। 

जब जागें तब सवेरा। जब समझ मे आ जाये कि जीवन मे कुछ गलत हो रहा है तो सबसे पहले ये सुनिश्चित करो कि क्या गलत हुआ है, फिर पीछे की तरफ लौटते हुए समझो कि क्यों गलत हुआ है। वो कौन सा काम है, कौन सा व्यक्ति है कौन सी चूक या बदमाशी है जिसके कारण मेरे जीवन मे गलत हो रहा है। जब ये सुनिश्चित हो जाये तो उसे तुरंत वहीं का वहीं रोक दो। 

जिस व्यक्ति, काम, चूक के कारण नुकसान हो रहा है उसके रास्ते मे अपना प्रतिरोध खड़ा करो। उससे दूर हो जाओ। उसको अपनी जानकारी न लगने दो। अपनी गलती के कारण जहां जहां जो हानि आगे हो सकती है उसकी भरपाई या तुरपाई करने की कोशिश में जुट जाओ। जब स्थिति पर काबू आ जाये तो धीरे से खुद को अलग कर लो। 

यह जीवन भाग्य भरोसे जीने के लिए नहीं है और न किसी दूसरे के बुरे ग्रहों के प्रभाव स्वयं पर लेने के लिए है। किसी और के दुर्भाग्य, कष्टों, समस्याओं का सोख्ता मत बन जाना। जीवन अपनी पूरी गरिमा और सम्मान के साथ जीने के लिए है। अपनी कीमत पहचानो। अपना मूल्य बढ़ाओ। महंगे बनो। कम क्रय शक्ति वाले तुम्हें महंगा सोचते हैं तो वो तुम्हारी कीमत नहीं अपनी औकात को टटोलते रहते हैं और कोशिश करते हैं कि किसी तरह से तुम्हें अपनी औकात के दायरे में ले आएं।

खुद से लाभ उठाने वाले लोगों के लिए अलभ्य बनो। दुर्लभ बनो। हानि को रोको। जीवन को आगे बढ़ाओ। कर के देखो कुछ दिनों में अच्छा लगने लगेगा। अच्छा महसूस होने लगेगा। अच्छा होने लगेगा। 

तुम्हारा 
मन्यु आत्रेय

Sunday 6 August 2023

माइंड योर लैंग्वेज

           माइंड योर लैंग्वेज            

मन्यु आत्रेय 

अगर मैं आपसे ये कहूँ कि भाषा की ज़रूरत आपको उतनी ही है जैसी आपको रोटी कपड़ा और मकान की होती है तो क्या आप यकीन करेंगे ? शायद नहीं !! अच्छा चलिए एक कल्पना कर के देखिए।

कल्पना कीजिए कि आप हर एक भाषा भूल गए हैं ! 

एक दिन सुबह आप जागते हैं और पाते हैं कि आपके दिमाग से सारी भाषा गायब हो गई है। हर एक भाषा आप भूल गए हैं  आप देखते हैं कि आप कोई सार्थक शब्द नहीं बोल पा रहे हैं, न कोई बात आप लिख सकते हैं ना संकेत आपको सूझ रहे हैं, आपको भूख - प्यास लग रही है पर आप बता नहीं पा रहे। 

आपके अंदर घबराहट हो रही है कि ये क्या हो गया लेकिन आप के पास इसे बताने के लिए कोई शब्द या इशारा ही नहीं है। अचानक आपके परिवार का कोई सदस्य आपके सामने आ गया और आप के जी मे जी आया लेकिन आप ये नहीं समझ पा रहे हैं कि उनसे प्रेम कैसे प्रदर्शित करें। अखबार में लिखी हुई भाषा आपको रेंगते हुए चित्रों की तरह लग रही है ! 

अचानक मोबाइल पर एक रिंग बजी है किंतु उसके नम्बर और नाम को आप पढ़ नहीं पा रहे हैं, आपके बॉस का  फ़ोन आया है आपका बॉस आपको कुछ कह रहा है लेकिन उसका एक भी शब्द आपको समझ नहीं आ रहा है और आप के दिमाग मे कोई शब्द ही नहीं उभर रहा है कि क्या कहना है या कुछ कहना भी है 

भाषा के बिना आप प्रागैतिहासिक मानव जैसे हो जाते हैं ! शुक्र मनाइए कि ये सिर्फ एक कल्पना है जो किसी बुरे स्वप्न से कम नहीं है।भाषा हमारी अनिवार्य ज़रूरत है 

एक दिन भाषा यदि गायब हो जाये तो हम शायद पागल ही हो जाएं। हम एक बातूनी प्रजाति हैं बिना बोले बिना अभिव्यक्ति किये हमें चैन नहीं मिलता। 

अगर आप कम बोलने वाले हैं और बैलगाड़ी की रफ्तार से भी बोलते हैं तो आप दिन भर में 3000 शब्द से ज़्यादा बोलते होंगे। यदि औसत बोलने वाले हैं तो आप 15000-16000 शब्द प्रति दिन में बोल लेते होंगे। यदि आप ज़्यादा बात करने वाले हैं तो शायद 24000 शब्द प्रतिदिन भी आपके लिए कम पड़ जाए। आपकी भाषा आपकी अनिवार्य आवश्यकता है। यहां तक कि गूंगे बहरे और दृष्टि हीन लोगों के लिए भी उनकी अपनी भाषाएं विकसित की गई है । कंप्यूटर्स के लिए अलग अलग भाषाएं हैं। 

भाषा के बिना न तो इंसान और न ही जीव जगत का काम चलेगा। आप जानते होंगे कि जीव जंतुओं की अपनी अलग अलग भाषा होती है। अधिकांश में ध्वनि स्वर से और देह भाषा से संवाद किया जाता है। इंसान के महान आविष्कारों में भाषा एक प्रमुख आविष्कार है जिसने इंसान को जानवरों से अलग किया,ज्ञान का निर्माण और संचय करने में, ज्ञान के हस्तांतरण में मदद की, आदमी को अपने जटिल मनोभावों, इच्छाओं, सोच आदि को दूसरों तक पहुंचाने में मदद की। 

भाषा ने ही प्रागैतिहासिक काल मे मनुष्य को समुदाय बनाने में, परिवार बनाने में,नीति नियम बनाने में मदद की। पूरी दुनिया मे करीबन 5000 से 7000 तक भाषाएं और बोलियां मौजूद हैं उनमे से कई एकदम आदिम काल से चली आ रही हैं।

अगर आप नहीं जानते तो ये आपके  लिए ही है !!

भाषा आपका एक उपकरण है। आपका उपकरण यदि सही स्थिति में रहेगा और उसका सही इस्तेमाल यदि आप कर पाएंगे तो वो आपको सबसे ज़्यादा लाभ देगा। Mind Your Language श्रृंखला में हम सीखेंगे कि हम भाषा का सबसे अच्छा उपयोग कैसे कर सकते हैं ताकि हमें अधिकतम सफलता मिल सके, हम एक बेहतर वक्ता बन पाएं, हमारी भाषा मे प्रभाव पैदा हो सके। इस श्रृंखला में हम सीखेंगे कि हमारी भाषा में छोटी बड़ी क्या खामियां रह जाती हैं और उन्हें कैसे सुधार सकते हैं. कैसे हम अपनी निजी ज़िन्दगी, प्रोफेशनल लाइफ और सामाजिक दायरे में फायदा उठा सकते हैं. जीवन के विभिन्न अवसरों पर हम किस तरह की भाषा का इस्तेमाल करें ताकि किसी नुकसान बचें और अधिकतम लाभ उठा पाएं, हम कैसी भाषा बी इस्तेमाल करें ताकि हमारे जीवन में शांति आये दुविधा कम हो. हमारी भाषा में ऐसा क्या बदलाव लाएं जिससे हमारे दुश्मन न केवल हतोत्साहित हों बल्कि हमारे साथ समझौता करें या दोस्त बन जाएँ. हम कैसी भाषा का इस्तेमाल करें ताकि हमारे बिगड़ते हुए सम्बन्ध सुधर जाएँ, हमारी भाषा कैसी हो जो हमें भीतर से मज़बूत बनाये. इसलिए जुड़े रहिये
और  माइंड योर लैंग्वेज !!
 
 
 

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